लखनऊ,एजेंसी-16 जुलाई। उत्तर प्रदेश में अब उपचुनाव के दौरान सियासी दलों का असली दमखम देखने को मिलेगा। लोकसभा चुनाव के बाद हो रहे उपचुनाव में कई सियासी दलों की अग्नि परीक्षा होगी। भाजपा के 11 व अपना दल के एक विधायक के सांसद बन जाने के कारण तथा मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई 12 विधानसभा व मैनपुरी लोकसभा सीट पर सितम्बर-अक्टूबर में उपचुनाव सम्भावित हैं। इस चुनाव में बसपा के शामिल नहीं होने के ऐलान के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका लाभ कौन दल उठा पाता है।
मोदी लहर के बाद पहली बार परीक्षा में उतर रही भाजपा के लिए 12 विधानसभा सीटें जीतना जहां चुनौती है, वहीं यह चुनाव उसकी प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है, क्योंकि अब मोदी लहर नहीं, मोदी इफेक्ट की परीक्षा होगी। दूसरी ओर कानून व्यवस्था सहित अन्य मुद्दों पर चौतरफा हमला झेल रही उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सपा के लिए भी लोकसभा चुनाव में मिले जख्मों की भरपाई उपचुनाव में करना आसान नहीं होगा। यह चुनाव जनता के बीच उसकी मौजूदा छवि और लोकप्रियता का पैमान होगा। हालांकि सपा अगर कुछ सीटों पर जीत हासिल करती है तो उसके लिए राहत की बात होगी, लेकिन लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद उपचुनाव में हारना भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
भाजपा को जहां मोदी इफेक्ट को बनाए रखने के लिए कवायद करनी है, वहीं उसके वे सांसद जो चुनाव से पहले तक विधायक के तौर पर अपने क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उनके लिए अपने पूर्व के विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी प्रत्याशी को जीत दिलाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बना रहेगा। भाजपा को लोकसभा चुनाव में अतिपिछड़ों का जहां भारी प्रतिशत में वोट मिला, वहीं वह सपा व बसपा के परम्परागत मतों में भी सेंधमारी करने में सफल रही थी।
अब देखना होगा कि क्या भाजपा लोक सभा चुनाव की तरह ही अतिपिछड़ों, पिछड़ों व दलित वर्गो पर अपने प्रभाव का सिक्का जमा पाती है। ताजा स्थिति की बात करें तो सपा, भाजपा विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों की तलाश में जुटे हुए हैं। वहीं भाजपा में टिकट के दावेदारों की लम्बी सूची है। ऐसे में पार्टी के लिए प्रत्याशियों का चयन करना भी आसान नहीं होगा। कुल मिलाकर यह उपचुनाव सपा व भाजपा के लिए भविष्य की राजनीति व प्रतिष्ठा से जुड़ा विषय साबित होने जा रहा है।