पटना,एजेंसी-20 मई। लोकसभा चुनाव में पार्टी को अपेक्षित सीटें नहीं मिलने पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को अपनी सरकार में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण मंत्री रहे मांझी का नाम प्रस्तावित किया।
जद(यू) विधायक दल की बैठक के बाद सोमवार शाम नीतीश कुमार, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के साथ मांझी राजभवन पहुंचे और राज्यपाल डी़ वाई़ पाटील से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया।
राजभवन से लौटने के बाद शरद यादव ने कहा कि मंगलवार को शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नीतीश ने ऐन वक्त पर इस्तीफा देकर बहुत अच्छा किया। विपक्ष के पास अब कोई मुद्दा ही नहीं रहा।
इससे पहले, जद (यू) विधायक दल ने रविवार को नीतीश को ही फिर नेता चुना, लेकिन नीतीश नहीं माने, सोमवार को दोबारा हुई बैठक में नीतीश को ही अगले मुख्यमंत्री का नाम तय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। नीतीश ने कुछ घंटे सोच-विचार के बाद जीतन राम मांझी का नाम प्रस्तावित किया।
नए मुख्यमंत्री के रूप में मांझी के नाम का ऐलान करने के बाद नीतीश ने अपने इस्तीफे पर एक बार फिर सफाई देते हुए कहा, “मैंने नैतिक मूल्यों के आधार पर इस्तीफा दिया है। मैंने अपने अंतर्मन की आवाज सुनी। यह बात समझी जानी चाहिए। मैंने किसी भावावेश में नहीं, बल्कि सोच-समझ कर इस्तीफा दिया है।”
नीतीश ने कम बोलने वाले, सौम्य स्वभाव वाले और स्वच्छ छवि वाले मांझी पर भरोसा किया है। उन्हें उम्मीद है कि महादलित मुसहर समुदाय से आने वाले मांझी के मुख्यमंत्री बनने से पार्टी को इस समुदाय का भरपूर समर्थन मिलेगा।
68 वर्षीय मांझी बिहार में वर्ष 2008 से ही मंत्री रहे हैं। वह गया जिले के महकारा गांव के निवासी हैं और जहानाबाद जिले के मखदूमपुर क्षेत्र के विधायक हैं। उन्होंने बचपन में बाल मजदूरी की, फिर एक दफ्तर में क्लर्की करने के बाद राजनीति में आए और मंत्री बने। वह गया से लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, मगर तीसरे स्थान पर रहे।
इस बीच पटना के एक अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के सामने इस्तीफा वापस लेने की मांग पर अड़े कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा, “यह साधारण फैसला नहीं है, हमारे सामने असाधारण स्थिति है। ऐसे समय में असाधारण फैसले लेने ही पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा, “इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह की चीजें देखने को मिलीं, वैसी चीजें अब तक के राजनीतिक जीवन में मैंने कभी नहीं देखी। ऐसा माहौल कभी नहीं दिखाई दिया। बहुत बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की बात हुई। लोगों के बीच भ्रम फैलाया गया। फिर भी जनता के जनादेश का हमें सम्मान करना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि जद (यू) के पास बहुमत है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और निर्दलीय विधायकों का साथ है, और कोई यह नहीं कह सकता कि बिहार में विकास नहीं हुआ है। जो काम हुआ है, वह आगे बढ़ेगा। उन्होंने कार्यकर्ताओं से अपील करते हुए कहा कि चुनौतियां कठिन हैं, मन मजबूत करें।
वहीं, पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने कहा, “नीतीश का यह फैसला देशहित और पार्टी के हित में है। उनके निर्णय के बाद विधायकों में कई तरह की शंकाएं थीं, जिसे दूर किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि यह फैसला देश को लक्ष्य कर किया गया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग होने का फैसला इस दिशा में पहला कदम था, जबकि यह दूसरा कदम है।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) का भी वह हश्र हुआ है जो बिहार में जद (यू) का हुआ है। 80 सीटों वाले उप्र में सपा को मात्र पांच सीटें मिली हैं। शर्मनाक हार के बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अभी तक इस्तीफे की पेशकश नहीं की है, और न ही ऐसी कोई चर्चा है लेकिन बिहार में नीतीश ने नैतिक दायित्व स्वीकार कर विरोधियों की बोलती बंद कर दी है।
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