लखनऊ,एजेंसी-24 अप्रैल | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की कथित लहर पर सवार पार्टी के प्रत्याशियों को अब उत्तर प्रदेश के कभी दिग्गज रहे वरिष्ठ नेताओं की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया और मैनेजमेंट के सहारे ही उन्हें अपनी नैया पार होती दिख रही है। आलम यह है कि उप्र भाजपा के कई बड़े नेता हाशिए पर डाल दिए गए हैं या फिर वे खुद नाराज होकर नेपथ्य में चले गए हैं। कभी भाजपा के दिग्गजों में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश के ये नेता क्या कर रहे हैं, खुद भाजपा कार्यकताओं को ही नहीं पता है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में कभी उप्र के नेताओं की तूती बोलती थी। एक लंबी श्रृंखला थी। मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, विनय कटियार, केसरी नाथ त्रिपाठी, ओम प्रकाश सिंह, सुरजीत सिंह डंग, सत्यदेव सिंह, हृदय नारायण दीक्षित, सूर्य प्रताप शाही समेत कई ऐसे नाम हैं जिनका सहयोग लेने से भाजपाई कतरा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने इन्हें हाशिए पर डाल दिया तो अब प्रत्याशी भी इनमें से ज्यादातर लोगों के कार्यक्रमों की मांग नहीं कर रहे हैं।
बनारस से कानपुर जाने के लिए मजबूर किए गए दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी की स्थिति खराब है। भाजपा के तीन शीर्ष नेताओं में शामिल जोशी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का उदय पचा नहीं पा रहे हैं। अब वह कानपुर में ही उलझे हुए हैं। सूत्र बता रहे हैं कि उनका कार्यक्रम कोई भी प्रत्याशी नहीं चाह रहा है। उसे डर है कि पता नहीं क्या बोल जाएं और बनी बनाई हवा का रुख मुड़ जाए।
कलराज मिश्र यूपी के बड़े नेता हैं। उप्र का कोना-कोना छानने वाले और कार्यकताओं को नाम से जानने वाले कलराज देवरिया तक सिमट कर रह गए हैं। देवरिया से बाहर निकल नहीं पा रहे हैं। बजरंगी नाम से प्रसिद्ध विनय कटियार अब किनारे हो गए हैं। लल्लू सिंह से शीतयुद्ध में ऊर्जा खत्म करने और लगातार तीन चुनाव हारने के बाद अब कोई प्रत्याशी उनके कार्यक्रम की मांग नहीं कर रहा है। पार्टी लगभग जबरिया उनका कार्यक्रम लगा रही है।
पटेल की प्रतिमा के लौह संग्रहण अभियान में लगाए गए ओम प्रकाश सिंह को अभियान को सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर पाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। गठबंधन में उनके पुत्र अनुराग सिंह की दावेदारी वाली मिर्जापुर सीट एक विधायक वाली पार्टी अपना दल के खाते में चली गई। अनुराग ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और ओम प्रकाश सिंह नेपथ्य में चले गए। वैसे खबर यह भी है कि उनके कार्यक्रमों की मांग न के बराबर है। सीट न मिलने से नाराज केसरी नाथ त्रिपाठी भी कोप भवन में जा चुके हैं।
हृदय नारायण दीक्षित जैसे वरिष्ठ नेता को भी पार्टी ने राजनाथ सिंह को जिताने की जिम्मेदारी देकर बांध रखा है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही नाराज हैं। सपा में जाने की खबरें आई थीं, लेकिन मामला बन नहीं पाने की वजह से पार्टी के भीतर ही घुटन महसूस कर रहे हैं। प्रदेश में उनकी सक्रियता शून्य है। सत्यदेव सिंह एवं सुरजीत सिंह डंग जैसे नेता कहां हैं, किसी को खबर नहीं है।
भाजपा उम्मीदवारों में भी सबसे अधिक मांग मोदी की है। उसके बाद राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, उमा भारती और लक्ष्मीकांत वाजपेयी की। वरुण गांधी जैसा युवा और तेजतर्रार नेता भी उप्र की बजाय केवल अपने चुनाव क्षेत्र तक सिमटे हुए हैं। योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल भी गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों तक हो रहा है। भाजपा को अब नेताओं की नहीं, लहर का ही आसरा है।