कूच बिहार/नई दिल्ली,(एजेंसी)01 अगस्त। भारत-बांग्लादेश में हुए ऐतिहासिक सीमा समझौते के तहत गांवों की अदला-बदली शुक्रवार रात से शुरू हो गई। भारत का हिस्सा कहलाने वाले 111 गांव जहां बांग्लादेश की झोली में चले गए, वहीं बांग्लादेश की सीमा में आने वाले 55 गांव भारत से जुड़ गए। दोनों देशों के बीच हुए गांवों के इस आदान-प्रदान को लेकर वहां के लोगों में मिली-जुली भावनाएं हैं।
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बांग्लादेशी गांव के ज्यादातर लोग जहां भारत में शामिल होने के बाद बेहतर भविष्य को लेकर आशावान हैं, वहीं भारतीय गांव के बाशिंदों को जिंदगी दोराहे पर नजर आ रही है। स्वदेश में खुशहाल जिंदगी का सपना लेकर ये लोग गांव छोड़ने का फैसला लेते हैं तो पुश्तैनी जमीन-जायदाद से उनका नाता टूट जाता है और गांव में बने रहकर गुजर-बसर करने की सोचते हैं तो भारतीय नागरिकता से हाथ धोना पड़ता है।
अदला-बदली का असर
– 111 गांव भारत के जा रहे बांग्लादेश में
– 17,161 एकड़ के दायरे में फैले हैं ये गांव
– 37 हजार के करीब है इनकी आबादी
– 51 गांव बांग्लादेश के आ रहे हैं भारत में
– 7,110 एकड़ है इन गावों का क्षेत्रफल
– 14 हजार लोग तकरीबन रहते हैं यहां
भारत को फायदा
– आतंकी घुसपैठ और अवैध प्रवासियों का आव्रजन रोकने में भारत को मिलेगी मदद
– द्विपक्षीय व्यापार में होगा इजाफा, ड्रग्स-अवैध वस्तुओं की तस्करी पर भी लगेगी लगाम
जमीन का मोह
भारत-बांग्लादेश एनक्लेव एक्सचेंज कोऑर्डिनेशन कमेटी के उप सचिव दीप्तिमन सेनगुप्ता ने बताया कि भारत से जुड़ने वाले बांग्लादेशी गांवों से किसी ने भी स्वदेश लौटने की ख्वाहिश जाहिर नहीं की है। जबकि बांग्लादेश के खाते में जाने वाले भारतीय 111 गांव के 1,050 बाशिंदों ने घर-बार छोड़कर भारत में बसने का फैसला किया है। शुरुआत में यह संख्या 1,700 के करीब थी। लेकिन पुश्तैनी जमीन और स्थानीय आबोहवा से लगाव के चलते 550 लोगों ने अपना विचार बदल दिया।
लोगों की अदला-बदली नवंबर से
दोनों देशों के लोगों की अदला-बदली 1 नवंबर से 30 नवंबर तक होगी। पीएम नरेंद्र मोदी के 6-7 जून, 2015 के ढाका दौरे के समय वर्ष 1974 के भूमि सीमा समझौते को अंतिम रूप दिया गया था। बांग्लादेशी गांव के लोग जहां भारत में शामिल होने के बाद बेहतर भविष्य को लेकर आशावान हैं। वहीं, भारतीय गांव के बाशिंदे चिंतित हैं।
‘देर आए, दुरुस्त आए। गांव के लोगों पर लगा ‘एनक्लेव वासी’ का ठप्पा हटाने में दोनों देशों की सरकारों ने भले ही 68 साल जाया कर दिए, लेकिन लंबे अंतराल के बाद ही सही। सीमा समझौते के तहत भत्रिगच्चि के भारत में शामिल होने से हमारे दिलों में विकास की नई उम्मीदें जगी हैं। हम अब भारतीय नागरिक कहलाएंगे। हमें न सिर्फ बिजली, पानी, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया होंगी, बल्कि रोजगार के बेहतर मौके भी मिलेंगे।’
– मुहम्मद अली, भत्रिगच्ची निवासी
‘अभी तक जिंदगी आराम से गुजर रही थी। मेरे घर में बिजली कनेक्शन था। मेरे बच्चे पहचान छिपाए बगैर स्कूल जाते थे। मेरे परिवार को बेहतर सुविधाओं से लैस अस्पताल तक पहुंच हासिल थी। यह सब इसलिए था, क्योंकि मुस्लिम बाहुल्य मध्य मशालदंगा भारत का हिस्सा था। लेकिन गांव की अदला-बदली के बाद न सिर्फ बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में कमी आएगी, बल्कि मुझे धर्म-परिवर्तन का डर भी सताने लगा है।’
– चित्त दास, मध्य मशालदंगा निवासी
‘मशालदंगा के लोगों को घंटों कटौती का सामना करना पड़ता है। बिजली आती भी है तो अधिकतर समय वोल्टेज काफी धीमा होता है। लेकिन भत्रिगच्ची के लोगों को तो बिजली नसीब ही नहीं है। खेंतों की सिंचाई और मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए हमें जनरेटर चलाना पड़ता है। मशालदंगा के लोगों को 10 रुपये की सब्सिडी पर डीजल मिलता है, जबकि हमें यह 50 रुपये में उपलब्ध है। गांवों की अदला-बदली से हमारे घर होंगे। कारोबार के लिए हम भारत में बिना रोक-टोक कहीं भी आ-जा सकेंगे।’
– अली असगर, भात्रिगच्ची निवासी