नई दिल्ली,(एजेंसी)21 जुलाई। मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा में विपक्ष ने ललित मोदी मुद्दे को लेकर जमकर हंगामा किया। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने ललित मोदी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि पीएम मोदी किए सभी वादे झूठे साबित हो रहे हैं। उन्हाेंने इस संबंध में सुषमा स्वराज, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के इस्तीफे की मांग की। इसके बाद सदन में हंगामा शुरू हो गया। सदन में हंगामा थमता न देख सभापति ने दिनभर के लिए स्थगित कर दी। उधर, लोकसभा में मृतक सांसदों को श्रद्धांजलि देने के बाद सदन की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई।
राज्यसभा की कार्यवाही दोपहर दो बजे शुरू हुई तो सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सरकार हर मुद्दे पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन विपक्ष इससे पीछे हट रहा है। वे चर्चा नहीं केवल अवरोध उत्पन्न करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ललित मोदी मुद्दे पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज स्वयं अपना पक्ष सदन में रखने को तैयार हैं।
इस बात की पुष्टि करते हुए स्वराज ने ट्विटर पर लिखा कि मैं ललित मोदी मुद्दे पर आज ही जवाब देने को तैयार हूं। इसकी जानकारी मैंने अरुण जेटली को दी है और उन्होंने इसकी सूचना राज्यसभा को दी है। अब विपक्ष के रुख पर निर्भर करता है कि उसे क्या करना है।
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद परिसर में मीडिया से बातचीत में कहा कि कल अच्छे माहौल में सर्वदलीय बैठक हुई। सहयोग के लिए सभी सांसदों का आभार व्यक्त करता हूं। विपक्ष ने संसद में काम का भरोसा दिया है। हम चाहते हैं कि सब मिलकर महत्वपूर्ण फैसलें लें। उम्मीद है कि इस सत्र में अच्छे और अधिक निर्णय होंगे।
दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि वह भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल का विरोध करेंगी। यह बिल धन्नासेठों के हक में है। ललित मोदी मुद्दे पर मायावती ने कहा कि देश में कानून कहां रह गया है। मानवता के नाम पर भगोड़े की मदद की जा रही है। उन्होंने कहा कि विवाद में फंसे सभी मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना चाहिए। वहीं टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा है कि वह सांप्रदायिकता का जहर फैलाने वालों का कभी साथ नहीं देगी।
भूमि बिल इसी सत्र में पारित कराना मुश्किल :
सोमवार की सुबह संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू की बुलाई गई बैठक में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे। भूमि अधिग्रहण विधेयक एक बड़ा मुद्दा है। ऐसे में सपा नेता रामगोपाल यादव के रुख ने जरूर सरकार का उत्साह बढ़ाया। उन्होंने कहा कि अवरोध में बहुत समय बर्बाद होता है। भूमि अधिग्रहण पर भी सरकार और विपक्ष को आपसी सहयोग के साथ आगे बढऩा चाहिए। यह कांग्रेस के रुख से पूरी तरह उलट है, जो किसी भी कीमत पर वर्तमान विधेयक को पारित नहीं करने की घोषणा कर चुकी है। संकेत है कि भूमि विधेयक में कुछ संशोधन हो तो सपा, बसपा समेत कुछ अन्य दल इसका समर्थन कर सकते हैं। हालांकि उस दशा में भी मानसून सत्र में ही इसे पारित कराना थोड़ा मुश्किल दिख रहा है। विधेयक पर विचार के लिए संयुक्त समिति का कार्यकाल भी दो सप्ताह के लिए बढ़ाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामगोपाल की बात का समर्थन करते हुए कहा कि हर मुद्दे का समाधान सामूहिक रूप से ढूंढना होगा। सरकार की जिम्मेदारी ज्यादा है, लेकिन विपक्ष की भी जवाबदेही है। सरकार हर मुद्दे पर प्रावधानों के तहत चर्चा के लिए तैयार है।
पर राह नहीं आसान :
बहरहाल कांग्रेस और वाम का रुख सख्त ही है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद व माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि व्यापम, ललित गेट जैसे मुद्दों पर चर्चा भी मांगी और यह भी ताकीद किया कि सरकार संतोषजनक जवाब नहीं देती है तो फिर विपक्ष को अपना विकल्प देखना होगा। आजाद ने तो खुले तौर पर स्वराज समेत राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफा मांग लिया। पिछले सत्र में भी विपक्ष और सत्ता पक्ष से दूरी बनाकर चल रहे बीजद ने भी व्यापम पर चर्चा की जरूरत बताई। दो घंटे चली बैठक में यह स्पष्ट हो गया कि रास्ते निकल सकते हैैं लेकिन संभवत: सत्र का पहले कुछ दिन बाधित ही रहें। इस बीच, तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने भी कहा है कि वह भूमि बिल का विरोध करेंगी।
वक्तव्य सही, इस्तीफा नहीं :
हालांकि संसदीय कार्यमंत्री नायडू ने आशा जताई कि सभी दल आपसी सहयोग से मीडिया की उस रिपोर्ट को गलत साबित करेंगे जिसमें सत्र के बाधित रहने की आशंका जताई गई है। उन्होंने किसी भी मंत्री के इस्तीफे की मांग को तो खारिज किया, लेकिन यह जरूर बताया कि सुषमा सदन में अपना वक्तव्य दे सकती हैं। जबकि मुख्यमंत्रियों के मामले राज्यों से जुड़े हैैं। फिर भी चर्चा की जरूरत हुई तो भ्रष्टाचार पर बहस हो सकती है। संभवत: भ्रष्टाचार पर व्यापक बहस से कांग्रेस भी परहेज करे, क्योंकि फिर भाजपा कांग्र्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष से लेकर राज्यों के कई मामले उठा सकती है।
चर्चा प्रस्ताव की बाढ़ :
शिवसेना ने भारत-पाक सीमा पर तनाव पर चर्चा मांगी तो रामगोपाल ने आइएस की बढ़ते प्रभाव पर। इसके अलावा जातिगत जनगणना, दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के रिश्तों, अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए प्रमोशन में आरक्षण, जलवायु परिवर्तन, किसानों की आत्महत्या जैसे कई मुद्दों पर चर्चा का प्रस्ताव आया।