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जिसने याकूब मेमन को दी मौत की सजा, उस जज की जुबानी


नई दिल्ली,(एजेंसी)20 जुलाई। मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेमन को जिस जज ने फांसी की सजा सुनाई और देश का सबसे बड़ा आपराधिक मुकदमा चलाया और जिस जज ने फिल्म स्टार संजय दत्त को भी सजा सुनाई उनका नाम है जस्टिस पी डी कोदे। जिसने याकूब मेमन समेत 12 आरोपियों को फांसीं की सजा सुनाई।

जिसने फिल्मस्टार संजय दत्त को 6 साल जेल की सजा सुनाई। जिसने भारत का सबसे बडा आपराधिक मुकदमा चलाया। उनकी जुबानी पढ़िए हर मुद्दे पर बेबाक राय।

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मौत की सजा पर राय

मुझे अपने देश का कानून पर भरोसा है और हमारे कानून वक्त के साथ बदल रहे हैं। अगर आज के माहौल में हमारी कानून व्यवस्था को लगता है कि सजा ए मौत जरूरी है तो मैं उसका समर्थन करता हूं। भविष्य में ऐसा वक्त आ सकता है जब लोग दूसरों के अधिकारों का ध्यान रखेंगे तब शायद मौत की सजा की जरूरत न पडे।

मौत की सजा सुनाते वक्त मैं अपनी मानवीय भावनाओं से प्रभावित नहीं हुआ। जज किसी को मौत की सजा सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर सुनाता है। समाज कानून बनाता है, लेकिन ये भी सच है कि कानून समाज के लिये ही होता है। इसलिये अगर किसी को मौत की सजा दी जाती है तो वो समाज के लिये है। सजा व्यकित को नहीं दी जाती बल्कि उसके भीतर मौजूद आपराधित तत्व को दी जाती है। अगर न्यायव्यवस्था को ये विश्वास हो जाता है कि कोई शख्स समाज में रहने के लायक नहीं है तो उसे मौत की सजा दी जाती है।

याकूब मेमन पर राय
याकूब मेमन एक पढा लिखा आरोपी था और उसी मुताबिक वो व्यवहार भी करता था, लेकिन उसके व्यवहार का उसकी सजा पर कोई फर्क नहीं पडा। हर आरोपी ने जो किया उसकी सजा उसे मिली। मेरे पास कोर्ट में काम करने के लिये सिर्फ 5 घंटे मिलते थे। इस वक्त में मैं अपना काम कब करता और आरोपियों के आचरण कब देखता?

संजय दत्त पर राय
संजय दत्त ने अपने सेलिब्रेटी होने की वजह से कभी अदालत को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की. वो एक खानदानी घर का लडका था। एक बार उसने मुझसे कहा कि सरकारी पक्ष हमेशा मुझे आतंकवादी करके संबोधित करता है। अपने फैसले में मैने कहा कि वो आतंकवादी नहीं है। न तो वो साजिश की मीटिंग में था, न ट्रेनिंग में, न बम प्लांट करने में। सिर्फ हथियार रखा था, जिसके लिये उसे 6 साल जेल की सजा दी।

वो एक अच्छा अभिनेता है। मैं उसकी, उसके बाप की, उसके मां की फिल्में देखता रहा हूं। उसकी उम्र को देखते हुए मैं चाहता हूं कि वो आगे भी फिल्मों में इसी तरह काम करता रहे। उसलिये उसकी हौसला अफजाई की खातिर मैने फैसला सुनाते वक्त कहा कि तु्म 100 साल अभिनय करो, मैंने सिर्फ 6 साल लिये हैं।

दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन
मुझे इस बात का मलाल नहीं है कि दाऊद और टाईगर मेमन मेरे सामने बतौर आरोपी कठघरे में नहीं खडे हुए। अगर उन्हें लगता है कि वे बेगुनाह हैं तो उनके लिये ये एक मौका था अदालत में आकर मुकदमा लडने का और खुद को बेदाग साबित करने का। उन्होंने ऐसा नहीं किया इससे पता चलता है कि मतलब क्या है? मुंबई पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने उन्हें पकड़ने की ईमानदारी से पूरे प्रयास किये, लेकिन अगर वे नहीं आ सके तो इसके लिये उनको दोष नहीं देना चाहिये।

दाऊद के सरेंडर करने के ऑफर पर राय
दाऊद की सरेंडर की पेशकश को कभी भी आधिकारिर तौर पर मेरी अदालत के सामने नहीं रखा गया। राम जेठमलानी एक वकील हैं। अगर उनकी किसी आरोपी से बातचीत हुई है तो उनकी आपसी बातचीत का मैं संज्ञान कैसे ले सकता हूं?


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