लखनऊ ,(एजेंसी) 08 मार्च । यादव सिंह मामले में सरकार की तरफ से गृह विभाग और नोएडा विकास प्राधिकरण का हाई कोर्ट में दाखिल किया गया हलफनामा उनके लिए ही मुसीबत बन सकता है। दरअसल दोनों के हलफनामे से सीबीसीआईडी जांच और नोएडा विकास प्राधिकरण पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। हलफनामे से खुलासा हुआ है कि आरोपित की मांग पर सरकार ने जांच सीबीसीआईडी को ट्रांसफर कर दी। यादव सिंह के खिलाफ पीआईएल करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता डॉ़. नूतन ठाकुर 16 मार्च को होने वाली सुनवाई पर इन बिंदुओं पर हाई कोर्ट में सवाल उठाएंगी।
नूतन के मुताबिक नोएडा प्राधिकरण के आरपी सिंह ने 13 जून 2012 को सेक्टर-39 में जो एफआईआर दर्ज कराई थी। उसमें यादव सिंह के साथ परियोजना इंजिनियर रामेन्द्र को भी कमिशनखोरी में अभियुक्त बनाया था। वे 28 नवम्बर 2014 को इनकम टैक्स छापे में यादव सिंह के घर पर मिले थे और उन्होंने इनकम टैक्स के अधिकारियों के सामने स्वीकारा था कि प्रत्येक अनुबंध अवॉर्ड में अवैध कमिशन लिया जाता था, जिसके आधार पर नोएडा प्राधिकरण ने आठ दिसंबर 2014 को रामेन्द्र को स्सपेंड किया। इससे दो साल पहले जब यादव सिंह समेत अन्य के खिलाफ एफआईआर में जिन तथ्यों के आधार पर आरोप लगाया था वही इनकम टैक्स छापे के बाद सही साबित हुए। लेकिन सीबीसीआईडी ने उन्हीं आरोपों को नकारते हुए मामले में अंतिम रिपोर्ट लगा दी थी।
यही नहीं सरकार ने यादव सिंह के साथ 954 करोड़ के घोटाले के अभियुक्त जेएसपी कंस्ट्रक्शन के संजय जैन के अनुरोध पर जांच को नोएडा पुलिस से लेकर सीबीसीआईडी की क्राइम ब्रांच को दे दिया। जिस पर सीबीसीआईडी ने तीन जनवरी 2014 को फाइनल रिपोर्ट लगा दी। बाद में तीन सितंबर 2014 को मुकदमे के वादी आरपी सिंह भी एफआईआर से मुकर गए और सीबीसीआईडी की फाइनल रिपोर्ट पर कोई सवाल नहीं उठाया। इससे साफ जाहिर होता है कि यादव सिंह और अन्य आरोपितों को बचाने का पूरा मामला फिक्स था। इसके तहत पहले आरोपित के कहने पर जांच सीबीसीआईडी को दी और बाद में वादी भी मुकर गया। नोएडा की स्पेशल कोर्ट (एससी/एसटी) ने 21 नवंबर 2014 को सीबीसीआईडी की फाइनल रिपोर्ट स्वीकार कर ली। डॉ़ नूतन ठाकुर ने इन तथ्यों के आधार पर सीबीसीआईडी विवेचना के ही गलत होने की बात कहते हुए इन बातों को हलफनामे के जरिये 16 मार्च की सुनवाई में कोर्ट के सामने रखने की बात कही है।