प्रियांशु गुप्ता, खबर इंडिया नेटवर्क- लखनऊ। ‘आजादी की लड़ाई के समय देश का विभाजन किया। वंदेमातरम् को बांटा। दो तरह के कानून लागू किए। हर साल एक करोड़ नौजवानों को रोजगार देने का वादा किया गया था, मगर हुआ कुछ नही।’ गत कई जलसों में नरेन्द्र मोदी ने ऐसे ही तमाम आरोप यूपीए सरकार पर लगाए हैं। लेकिन इस कथित आरोप में भारतीय युवाओं को साधनें की कोशिश साफ झलकती है। मुमकिन है, मोदी के यह तेवर चुनाव की निकटता के साथ तल्ख होते जायेंगे। अब तक भाजपा के पीएम इन वेटिंग की रैलियों में युवाओं की मौजूदगी का मिला-जुला असर देखा गया है। बड़ा सवाल है कि मोदी अपनी तकरीरों से युवावर्ग को रिझाने में कितने सफल हुए हैं या होंगे?
भारतवर्ष दुनिया का सबसे युवा देश है। लिहाजा आगामी आम चुनाव में जो भी दल इस वर्ग को अपने पाले में कर सका, उसकी नैय्या किनारे लगनें की संभावना अधिक है। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में ज्यादातर युवाओं के वोट कांग्रेस को मिले थे। कारण राहुल ‘गांधी’ फैक्टर था। लेकिन इस बार तस्वीर बहुत बदली हुई है। ‘शहजादे’ के पास ऐसा कोई कारगर मसला नहीं है, जिसे वह सरकार की उपलब्धियां बताकर गिना सकें। साथ ही बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के पीएम इन वेटिंग मोदी जैसे तर्रार नही थे। पार्टी कार्यकर्ताओं में इस बार उत्साह भी अव्वल है।
अमूमन देखा गया है कि युवा जमात शुष्क और निष्क्रिय नेता नही पसंद करता। ऐसे में गुजराती मुख्यमंत्री की रौबदार छवि भी खुद मोदी के लिए ट्रम्प कार्ड है। इसके अलावा यूपीए शासन में बढ़ा रोजगार संकट भी भाजपा के पीएम इन वेटिंग के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। चूंकि उद्योग जगत गुजरात में मोदी की कुशल नीतियों से खुश रहा है, नौकरी उद्योग वर्ग के पास है इसलिए भी भारतीय युवावर्ग का एक बड़ा हिस्सा मोदी से प्रभावित है। इसे मानने में कोई गुरेज नही कि मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है। मौजूदा राजनति के प्रतिद्वंद्वि खेमे में कोई भी ऐसा चेहरा नही है कि मोदी के समान दहाड़ सके।
कुछ खबरों के मुताबिक मोदी अब अपनी सभाओं में सिर्फ गुजरात माडॅल का यशोगान नही करेंगे। वह अब देश विकास के अपने माॅडल को सामने रखेंगे। कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके माॅडल में बेरोजगारी से निपटने के युवाओं के कौशल वर्धन का रामबाण है। कहा यह भी जा रहा है कि मोदी माडॅल भले ही सबकों काम न दे पाए, वह रोजगार का रास्ता दिखाने का दावा जरुर करता है। इसमे कितनी फीसदी सच है, जवाब समय देगा।
मोदी के आने से साम्प्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की गूंज भी उठने लगी है। ऐसे में मोदी को हिंदू युवाओं का वोट हासिल हो न हो, अल्पसंख्यक युवाओं का समर्थन मिल पाना संदिग्ध है। नरेन्द्र मोदी के लिए यही से समस्या शुरु होती है। फिर केंद्रिय मंत्री जयराम रमेश का यह तब्सिरा भी मोदी के लिए आत्मचिंतन का विषय है – ‘2014 में कांग्रेस चुनाव हार जाती है तो भी राहुल गांधी बरकरार रहेंगे और वपसी करेंगे। लेकिन अगर मोदी हार गए तो वह समाप्त हो जायेंगे।’
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