नई दिल्ली,(एजेंसी)04 अगस्त। 21 जुलाई को शुरू हुए मानसून सत्र के दो हफ्ते विपक्ष के इस्तीफे की मांग को लेकर हुए हंगामे की भेंट चढ़ गए हैं। नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से सोमवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक संसद में गतिरोध समाप्त करने में नाकाम रही।
कांग्रेस तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ललित मोदी तथा व्यापम मुद्दे पर इस्तीफे को लेकर अपने-अपने रुख पर कायम हैं। कांग्रेस ने ललित मोदी के साथ संबंधों को लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और व्यापमं घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग की, जबकि सरकार ने विपक्ष की मांग खारिज कर दी।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री एम.वेंकैया नायडू ने कहा कि सर्वदलीय बैठक गतिरोध समाप्त करने के लिए शुरू हुआ, लेकिन कांग्रेस इस्तीफे की अपनी मांग पर अड़ी रही।
उन्होंने कहा, “कांग्रेस पहले इस्तीफा फिर सदन की कार्यवाही की अपनी मांग पर अड़ी हुई है। हालांकि, अन्य पार्टियों की राय है कि सदन को चलने देना चाहिए और विभिन्न विषयों पर चर्चा कराई जानी चाहिए।”
नायडू ने कांग्रेस पर सुषमा को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया और कहा कि यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार अपने रुख पर कायम है।
उन्होंने कहा, “वास्तव में, कांग्रेस अपने रुख पर कायम है। यहां तक कि मानसून सत्र के पहले ही कांग्रेस नेताओं ने कहा था कि वह बीजेपी नेताओं के इस्तीफे तक संसद की कार्यवाही नहीं चलने देंगे। हम उन सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार हैं, जिसपर वह चर्चा कराना चाहते हैं।”
नायडू ने यह भी कहा कि कांग्रेस सुषमा स्वराज को बदनाम करने के लिए अभियान चला रही है।
संसदीय कार्य मंत्री ने कहा, “पहले मंत्री को प्रतिक्रिया व्यक्त करने दीजिए। वह (सुषमा) लोगों के बीच अपनी बात रखने के लिए तैयार हैं। यहां तक कि जब जरूरत पड़ेगी, प्रधानमंत्री भी प्रतिक्रिया देंगे। 12 दिन बीत चुके हैं। अब तो संसद की कार्यवाही चलने दीजिए।”
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि वह इस बात को लेकर खुश हैं कि सरकार ने बैठक बुलाई, लेकिन दुर्भाग्य से वह सदन को अपने नियमों व शर्तो पर चलाना चाहती है।
उन्होंने कहा, “लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता. विपक्ष भी गतिरोध को खत्म करना चाहता है, लेकिन हमारी मांगें स्पष्ट है, पहले इस्तीफा फिर कार्यवाही।”
वहीं तृणमूल कांग्रेस नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि अधिकांश पार्टियों का मत है कि संसद की कार्यवाही चले, लेकिन यह सत्तारूढ़ पार्टी (बीजेपी) तथा मुख्य विपक्षी पार्टी (कांग्रेस) पर निर्भर करता है।
बंदोपाध्याय ने संवाददाताओं से कहा, “हमारे पास कई क्षेत्रीय मुद्दे हैं और उसपर हम संसद में चर्चा करना चाहते हैं। पूरा बंगाल बाढ़ से प्रभावित है। किसानों के भी मुद्दे हैं।”
समाजवादी पार्टी (सपा) नेता राम गोपाल यादव ने कहा, “यदि गतिरोध का कोई समाधान नहीं निकला, तो अंतत: संसदीय लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।”
बैठक में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद व मल्लिकार्जुन खड़गे, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सीताराम येचुरी, जनता दल-युनाइटेड (जद-यू) के शरद यादव, सपा के राम गोपाल यादव तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के शरद पवार सहित विभिन्न विपक्षी पार्टी के नेताओं ने हिस्सा लिया।
सरकार की तरफ से बैठक में राजनाथ सिंह, अरुण जेटली व वेंकैया नायडू उपस्थित थे।
कांग्रेस के 25 सांसद सस्पेंड
मानसून सत्र के शुरुआती दिन से ही ‘तीन इस्तीफों’ के लिए हंगामा कर रहे कांग्रेस के 44 में से 25 सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सोमवार को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया। अध्यक्ष के इस फैसले का विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अध्यक्ष के फैसले को भारत व लोकतंत्र के लिए एक ‘काला दिन’ करार दिया। इससे संकेत मिल रहे हैं कि विपक्ष की योजना संसद से लेकर सड़क तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नीत सरकार के खिलाफ लड़ाई को और तेज करने की है।
महाजन ने जहां अपने फैसले को न्यायोचित ठहराया, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने पांच दिनों तक लोकसभा का बहिष्कार करने की घोषणा की है। आम आदमी पार्टी (आप) ने फैसले को स्वीकार किया है, लेकिन यह स्पष्ट किया है कि उसके द्वारा महाजन के फैसले की निंदा करने का मतलब कांग्रेस का समर्थन करना नहीं है।
आज का दिन राजनीतिक तौर पर बेहद उथल-पुथल भरा रहा. संसद में गतिरोध को खत्म करने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई।
कांग्रेस विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा राजस्थान व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग पर अड़ी रही, जबकि सरकार ने उनकी मांग को खारिज कर दिया।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री एम.वेंकैया नायडू ने कहा कि कांग्रेस को केवल दो पार्टियों (वाम तथा जनता दल-युनाइटेड) का समर्थन है, जबकि बाकी सभी पार्टियां सदन में कार्यवाही चाहते हैं।
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों में हंगामा शुरू हो गया।
राज्यसभा में हंगामे के बीच सुषमा स्वराज ने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के दागी पूर्व आयुक्त ललित मोदी की मदद के अपने ऊपर लगे आरोप को निराधार बताया।
सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में कहा, “ललित मोदी को यात्रा दस्तावेज प्रदान करने के लिए मैंने कभी ब्रिटिश सरकार से अनुरोध नहीं किया।”
लोकसभा में भी हालात बदतर रहे. अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा तख्तियां न लहराने की चेतावनी के बावजूद कांग्रेस सदस्यों ने तख्तियां लहराईं व नारे लगाए।
हंगामे के बीच प्रश्नकाल खत्म होने के बाद महाजन ने लोकसभा की कार्यवाही दोपहर को दो घंटे के लिए स्थगित कर दी। जब एक बार फिर कार्यवाही शुरू हुई, तो कांग्रेस सदस्यों ने फिर से हंगामा शुरू कर दिया।
इसके बाद महाजन ने सदन की कार्यवाही में जानबूझ कर बाधा उत्पन्न करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस के 25 सदस्यों को निलंबित किए जाने की घोषणा की।
हंगामा कर रहे गौरव गोगोई, सुष्मिता देव, रंजीता रंजन, के.सी. वेणुगोपाल तथा दीपेंद्र सिंह हुड्डा सहित कांग्रेस के 25 सांसदों को नियम 374 (ए) के तहत निलंबित किया गया।
सोनिया गांधी ने इससे पहले दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर भड़ास निकाली।
मोदी पर हमला करते हुए उन्होंने ट्वीट किया, “जब उनके सहयोगी घोटाले में फंसे हैं, तब मन की बात करने वाले ने मौन व्रत रख लिया है।”
उन्होंने कहा, “अतीत में भाजपा द्वारा अपनाए गए आक्रामक रवैये को हम नहीं अपना रहे हैं, बल्कि हमें वर्तमान में भाजपा के बेशर्म रवैये के कारण यह रुख अपनाने को मजबूर होना पड़ा है।”
कांग्रेस के सांसदों के निलंबन की तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने निंदा की। उन्होंने कहा कि यदि सरकार विपक्ष को नहीं सुनना चाहती, तो सदन को नहीं चलने दिया जाएगा।
सुदीप ने कहा, “संसदीय राजनीति के हित में हम 25 सांसदों के निलंबन का विरोध करते हैं। हम कल से लोकसभा में उपस्थित नहीं होंगे।”
एक निलंबित सांसद गोगोई ने कहा कि अध्यक्ष के रवैये से आहत विपक्ष एकजुट हो गया है।
उन्होंने कहा, “हमें तृणमूल, राकांपा तथा वाम का समर्थन मिला है, जिन्होंने कार्यवाही का पांच दिनों तक बहिष्कार करने का फैसला किया है.”
वहीं महाजन ने अपना बचाव करते हुए कहा, “सदन की कार्यवाही सुचारु रूप से चलाने के लिए मैंने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया। मैं उन्हें सुबह से ही निलंबन की चेतावनी दे रही थी, लेकिन वे नहीं माने। बर्दाश्त की सीमा तब खत्म हो गई, जब एक सदस्य ने अध्यक्ष के सामने तख्ती लहराने का प्रयास किया.।”