केनबरा,(एजेंसी) 18 नवम्बर । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार सुबह अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष टोनी एबॉट को रानी लक्ष्मीबाई की ओर से ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ 1854 में लिखी ऑस्ट्रेलियाई वकील जॉन लैंग की याचिका भेंट की। प्रधानमंत्री ने इसे द्विपक्षीय वार्ता से ठीक पहले एबॉट को भेंट किया।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैय्यद अकबरुद्दीन ने ट्वीट किया, प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को ऑस्ट्रेलियाई जॉन लैंग द्वारा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की ओर से ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लिखी याचिका भेंट की। मोदी की ओर से एबॉट को दिए इस उपहार का ब्यौरा देते हुए अकबरुद्दीन ने कहा, मोदी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ झांसी की रानी की ओर से 1854 में लिखी अर्जी की मूल प्रति भेंट की।
ऑस्ट्रेलियाई संसद के परिसर में मोदी ने सलामी गारद का निरीक्षण किया। उनके सम्मान में 19 तोपों की सलामी भी दी गई। इस मौके पर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एबॉट और कई भारतीय मौजूद थे। इसके बाद वे प्रधानमंत्री कार्यालय में द्विपक्षीय वार्ता के लिए बढ़ गए। इससे पहलेए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केनबरा युद्ध स्मारक पर अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष टोनी एबॉट को सिख बटालियन की धरोहर मान सिंह ट्रोफी भेंट की। ऑस्ट्रेलिया की राजधानी में अपने पहले कार्यक्रम में मोदी मंगलवार सुबह एबॉट के साथ युद्ध स्मारक गए।
ऑस्ट्रेलिया के चार शहरों की यात्रा के तीसरे चरण में मोदी सोमवार रात यहां एयर इंडिया के विशेष विमान से पहुंचे। मोदी ने एबॉट को ट्रोफी भेंट की और युद्ध स्मारक पर विजिटर्स बुक पर साइन भी किए।
पहले विश्वयुद्ध में अक्टूबर 1914 से मई 1917 तक मिस्र के गल्लीपोलीए सिनई और मेसोपोटामिया में सेवा देने वाले बटालियन के अधिकारियों ने पहले विश्वयुद्ध में अदम्य वीरता का प्रदर्शन करने वाले सिपाहियों की याद में इसका निर्माण किया। मान सिंह के नाम पर यह ट्रोफी उनकी शरीरिक शक्ति और जुझारुपन के साथ सिपाही के गुण और पेशेवर क्षमता को मान्यता प्रदान करते हुए पेश की गई।
छह फुट और चार इंच लंबे सिंह को मजबूत व्यक्ति माना जाता था जो बड़ी बाधाओं और खाइयों को आसानी से पार करने में सक्षम माने जाते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि वह 50 गज की दूरी से ग्रेनेड फेंक सकते थे।
इस ट्रोफी में कई अनोखी बात हैं जिसमें सिंह को गलत पैर में जूता पहनेए झोला एक ही पट्टी से पीठ पर लटकाएए खाई में ग्रेनेड के स्थान पर गाढे दूध का डिब्बे और खुली मुद्रा में राइफल के बोल्ट को दर्शाया गया है। यह ट्रोफी सिख रेजिमेंट को 1 सिख (अब 4 एमईसीएच आईएनएफ) ने सेवा के 125 वर्ष पूरे होने के मौके पर भेंट की थी। सभी सिख रेजिमेंट बटालियन के पास इस ट्रोफी का कांसे का प्रतिरूप है।