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घर में शौंचालय न होना जिंदगी की सबसे बड़ी समस्या


लखनऊ,(एजेंसी)26 अगस्त। डर्टी पिक्चर की ऊ लाला. गर्ल बिंदास स्टाइल में शौचालय की बात कर रही थीं। बात करते-करते वह काफी संजीदा हो गईं। उनके चेहरे पर जो भाव थे वह देश की उन तमाम महिलाओं की पीड़ा बयान कर रहे थे जिनके लिए घर में शौचालय का न होना जिंदगी की सबसे बड़ी समस्या है। मुहिम के तहत भ्रमण करने की थकावट होने के बावजूद कुछ करने का जुनून उन्हें क्षण भर बाद ही ऊर्जा से लबरेज कर गया। फिर बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ उसमें कई पहलुओं पर बेबाकी से उन्होंने अपने विचार रखे।

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प्रश्न- फिल्मी चकाचौंध और हर घर में शौचालय जैसी मुहिम। यह कैसे?
उत्तर : खुले में शौच जाना महिलाओं की सुरक्षा, सेहत व सम्मान से जुड़ा है। इसका अहसास तब हुआ जबकि इस मुहिम के तहत एक बार वाराणसी की नजदीक लुसा गांव जाना हुआ। लौटते हुए जब मैंने बाथरूम जाने की जरूरत महसूस हुई तो बताया गया कि खुले में जाना पड़ेगा। यह सुनकर मैं हैरान परेशान हो गई। तब मुङो उन महिलाओं की पीड़ा समझ में आई जिन्हें रोज इस पीड़ा से गुजरना पड़ता है।

प्रश्न- क्या आपको लगता है कि इस मुहिम का असर पड़ रहा है?
उत्तर : जब मैंने मुहिम की शुरुआत की थी तब देश में 60 करोड़ लोग खुले में शौच जाते थे। यह आंकड़ा भले ही न बदला है, लेकिन यह जरूर है कि सोच बदल रही है। लड़कियां ऐसे घर में शादी करने के लिए मना करने लगी हैं जहां शौचालय नहीं। वहीं पंचायतें भी अपने गांवों में शौचालय बनवाने की बात कर रहे हैं।

प्रश्न – विद्या जब शौचालय की बात करती हैं तो यह कैसे अलग होती है?
उत्तर : मैं एक एक्ट्रेस हूं। लोग मेरी बात सुनने के साथ देखते भी हैं। ऐसे में संदेश दूर तक पहुंचता है। शौचालय से जुड़ी समस्या ऐसी है जिससे खासतौर पर महिलाएं सबसे अधिक परेशान होने के बावजूद परिवार तक में जिक्र करने से शर्माती हैं। मुङो खुशी है कि मैं ऐसी करोड़ों महिलाओं की आवाज बनकर समाज के सामने हूं। टीवी चैनल, रेडियो भी जागरूकता फैलाने में काफी मददगार साबित हो रहे हैं।

प्रश्न – ऐसे भी लोग हैं जिनके घरों में शौचालय है, लेकिन उसका प्रयोग नहीं करते?
उत्तर : करीब 55 फीसद लोग ऐसे हैं जिनके घर में शौचालय होने के बावजूद वह उसका प्रयोग यह कहकर नहीं करते कि घर में मंदिर है ऐसे में शौचालय कैसे हो सकता है। मैं पूछती हूं कि हम एक तरफ यह मानते हैं कि ईश्वर, गॉड, खुदा कण-कण में बसे हैं। वह हमारे मन में भी वास करते हैं। सवाल यह है कि ऐसे में खुले में शौच कर हम धरा जिससे हमें अन्न मिलता है, कैसे खराब कर सकते हैं।

प्रश्न- सरकार व स्वयं सेवी संगठनों द्वारा स्वच्छता अभियान आदि के तहत किए जा रहे प्रयासों का कोई असर पड़ रहा है?
उत्तर : बूंद-बूंद से सागर बनता है। ऐसे में 125 करोड़ की आबादी वाले देश में आधे लोगों तक भी बात पहुंच सके तो बड़ी बात है। इसके लिए हर एक को प्रयास करने होंगे। केवल सरकार या एनजीओ से काम नहीं चलेगा।

प्रश्न -लड़कियों की सुरक्षा आपके कितनी बड़ी चिंता का विषय है?
उत्तर : यह बहुत बड़ी चिंता है। स्त्री होने के नाते यह अहसास होना कि हम पर पहला हक खुद का है। दरअसल, कहा यह जाता है कि लड़कियां लड़कों के बराबर हैं, के बजाय यह कहना चाहिए कि लड़के लड़कियों के बराबर हैं। तभी बात बनेगी।

प्रश्न : लखनऊ आपका कई बार आना-जाना रहता है। यहां आपको क्या पसंद है?
उत्तर : मैं ज्यादातर लखनऊ के ही कपड़े पहनती हूं। चिकन की कढ़ाई की साडिय़ां, सूट बेहद पसंद हैं। मैं तो वेजीटेरियन हूं, लेकिन सिद्धार्थ ने कबाब की फरमाइश की है।

प्रश्न -खाली वक्त में क्या करती हैं?
उत्तर : टीवी व फिल्म देखना मुङो पसंद है। शास्त्रीय संगीत व पुरानी फिल्मों के गीत सुनना भी अच्छा लगता है। समय मिलने पर परिवार के साथ समय गुजारना और बारिश में लांग ड्राइव पर जाना भी मुझे अच्छा लगता है।

प्रश्न : आपको ज्यादातर साड़ी में’ ही देखा जाता है?
उत्तर : साड़ी मेरा पसंदीदा परिधान है। साड़ी बिंदी, चूड़ी ये सभी भारतीय नारी की पहचान हैं। मां को कॉटन की साडिय़ां बहुत पसंद हैं और उनसे ही मैंने भी साड़ी पहनना सीखा। साड़ी पहनकर मैं दौड़ सकती हूं, सो सकती हूं।


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