लखनऊ,एजेंसी-25 मार्च। 16वीं लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दलों का मुस्लिम प्रेम लगातार बढ़ रहा है। इस वर्ग के लिए अलग से वायदे हैं और इनको आकर्षित करने के लिए इस वर्ग के प्रतिनिधि भी चुनावी समर में उतारे जा रहे हैं। राजनीतिक दलों के मुस्लिम प्रेम के बावजूद उत्तर प्रदेश से संसद तक का सफर तय करने वाले मुस्लिम सांसदों की संख्या काफी कम रही है।
वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या 46 थी, जिसमें 18 ने जीत दर्ज कराई थी। इसके विपरीत वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में विभिन्न दलों ने 99 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे और इनमें से मात्र सात उम्मीदवार ही संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो सके।
वर्तमान लोकसभा चुनाव में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़ सभी प्रमुख दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। लोकसभा चुनाव की गतिविधियों के शुरू होते ही तमाम मुस्लिम संगठनों ने अपने-अपने तरीके से अपने वर्ग की पैरोकारी शुरू कर दी। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी लगातार बढ़ रही है। कुछ लोकसभा क्षेत्र में तो मुस्लिम आबादी कुल मतदाताओं में 17 से 18 फीसदी तक है, जबकि कुछ एक ऐसी भी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 20 फीसदी के करीब है।
इसके विपरीत प्रदेश की मुजफरनगर, कैराना, सहारनपुर, बदायूं, अमरोहा, रामपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली, गाजीपुर, फतेहपुर सीकरी, बलरामपुर, जौनपुर, संभल, शाहाबाद आदि लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या कुल मतदाताओं की लगभग 25 फीसदी से भी ज्यादा है। यही कारण है कि इन सीटों पर अधिकतर प्रमुख दल इसी वर्ग के प्रतिनिधि ही चुनाव मैदान में उतारते हैं।
मुस्लिम प्रत्याशी होने के बाद भी इन उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ता है। बीते कुछ चुनावों के आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुस्लिम मतदाताओं पर भी राजनीतिक दल का मुस्लिम कार्ड बहुत प्रभावी नहीं हो पाता, जिसका परिणाम यह है कि इन मुस्लिम आबादी बहुल सीटों पर भी दूसरे समुदाय के लोगों ने अपनी जीत दर्ज कराई है।
वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में सभी प्रमुख दलों ने उत्तर प्रदेश से कुल 46 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा। इस चुनाव में सबसे ज्यादा 18 प्रत्याशियों ने अपनी जीत दर्ज कराई, लेकिन इसके बाद यह ग्राफ लगातार नीचे आता गया। वर्ष 1984 में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या जहां घटकर 34 हो गई, वहीं संसद पहुंचने वालों की संख्या भी घटकर 12 पर आ गई। इसके बाद वर्ष 1989 में मुस्लिम सांसदों की संख्या घटकर 8 हुई, तो 1991 में राम लहर में इनकी संख्या और कम हो गई। वर्ष 1991 में मात्र तीन मुस्लिम प्रत्याशी ही अपनी जीत दर्ज करा सके।
लोकसभा चुनाव के इतिहास में जीतकर संसद पहुंचने वाले मुस्लिमों की यह सबसे कम संख्या थी। हालांकि 1998 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर छह हुई, 1999 में आठ और 2004 में तो 11 मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर संसद पहुंचे थे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में यह संख्या घटकर सात पर सिमट गई।
वर्तमान में प्रदेश से मात्र सात मुस्लिम सांसद हैं। इसमें दो महिला सांसद कैराना से तबस्सुम बेगम व सीतापुर से कैसरजहां के अलावा मुजफ्फरनगर से कादिर राणा, मुरादाबाद से अजहरुद्दीन, संभल से डां.शफीकुर्रहमान बर्क, लखीमपुर खीरी से जफर अली नकवी, फरुखाबाद से सलमान खुर्शीद शामिल हैं। हालांकि राजनीतिक दलों के इस वर्ग के प्रति बढ़ते प्रेम और मुस्लिम आबादी के अनुपात में यह संख्या संतोषजनक नहीं कही जा सकती है।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव के समय मुस्लिम आबादी कुल आबादी की 14 फीसदी थी, जिसमें लगातार इजाफा हुआ है। वर्ष 1999 में आबादी के अनुपात में 4.16 फीसदी मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया गया। इसके विपरीत 2004 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम आबादी 17 फीसदी से ज्यादा हो गई थी, लेकिन उस अनुपात में मात्र 5.33 फीसदी मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया गया।
प्रदेश की तमाम सीटों पर मुस्लिम आबादी 2009 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 20 फीसदी से ज्यादा हो गई और इस वर्ग के प्रतिनिधियों को प्रत्याशी बनाने का यह आंकड़ा छह फीसदी पहुंच गया, लेकिन इनकी जीत के ग्राफ में अपेक्षित बढ़ोत्तरी नहीं हुई। इसमें मात्र सात प्रत्याशी ही संसद पहुंचने में कामयाब रहे।
वर्ष 1980 में सर्वाधिक 18 मुस्लिम सांसद उप्र से लोकसभा पहुंचे। वर्ष 2009 के चुनाव में देशभर से 99 मुस्लिम प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी, कुल 80 जीते।
कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिमों की आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है। ऐसी सीटों में मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर, बदायूं, अमरोहा, रामपुर, शाहाबाद, बिजनौर, मुरादाबाद, सम्भल, बलरामपुर, जौनपुर, फतेहपुर सीकरी, गाजीपुर, बरेली, और लखनऊ प्रमुख हैं।
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