लखनऊ विश्वविद्यालय अब दूब (घास) से महिलाओं में पाए जाने वाले गर्भाशय (सर्वाइकल) के कैंसर के लिए अल्टरनेटिव थेरेपी विकसित करेगा। दूब में एंटी कैंसर के गुण पाए जाते हैं। इसकी पत्ती और जड़ों की मदद से गर्भाशय के कैंसर के इलाज की संभावनाएं खोजी जाएंगी। शासन ने विश्वविद्यालय के ओएनजीसी सेंटर में स्थित इंस्टीट आफ रिसर्च एडवांस मालिकुलर जेनेटिक एंड इन्फेक्टिअस डिजीज को यह प्रोजेक्ट दिया है। दरअसल, महिलाओं में होने वाला दूसरा बड़ा कैंसर गर्भाशय का होता है। इसका मुख्य कारक ह्यूमन पैपीलोमा वायरस (एचपीवी) का संक्रमण है, जिससे दुनिया में हर साल लगभग छह लाख नए केस आते हैं। इनमें ढाई लाख महिलाओं की मृत्यु का कारण यही कैंसर है, जबकि भारत में इससे पीडि़त महिलाओं का आंकड़ा लगभग एक लाख सालाना है। करीब 60 हजार महिलाओं की मृत्यु इससे होती है। इसके उपचार के लिए अभी जो कीमो रेडियो थेरेपी की जाती है, उसकी प्रभाविकता में लगातार कमी देखने को मिल रही है, जिससे कैंसर की पुनरावृत्ति हो रही है। इसलिए अल्टरनेटिव थेरेपी की जरूरत है।
दूब की बात है खास
खास बात यह है कि इसमें बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिसमें एंटीवायरल, एंटमाइक्रोबियल, एंटीइंफ्लैमेटरी एवं एंटी कैंसर गुण शामिल हैं। इसका प्रयोग आंत एवं स्तन कैंसर की कोशिकाओं के विकास को रोकने के लिए किया गया है। इसी संभावनाओं को लखनऊ विश्वविद्यालय दूब की पत्ती एवं जड़ से तत्व निकाल कर एंटी कैंसर ड्रग के साथ गर्भाशय के कैंसर के इलाज के लिए अल्टरनेटिव थेरेपी विकसित करेगा।
इस तरह होगा कार्य
लखनऊ विश्वविद्यालय दूब की पत्ती और जड़ से तत्व निकाल कर एंटी कैंसर ड्रग के साथ मिलाकर अल्टरनेटिव थेरेपी विकसित करेगा। इस प्रयोग में जीपीएमएस (गैस क्रोमैटोग्राफी मास स्पेक्ट्रोस्कापी) के माध्यम से दूब में पाए जाने वाले एंटी कैंसर तत्व की पहचान करके उसको एंटी कैंसर ड्रग के साथ गर्भाशय के कैंसर की कोशिकाओं पर परीक्षण किया जाएगा, जिससे मौजूदा कीमो थेरेपी को और ज्यादा प्रभावशाली बनाया जा सकेगा।
5,52,500 रुपये की मंजूरी
ओएनजीसी के निदेशक प्रो. एम सेराजुद्दीन ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए इंस्टीट्यूट को 5,52,500 रुपये का बजट स्वीकृत हुआ है। यह शोध कार्य इंस्टीट्यूट की निदेशक प्रो.मोनिशा बनर्जी के निर्देशन में होगा।