लखनऊ,(एजेंसी)08 मई। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे को भले ही ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट का नाम दिया गया है, लेकिन हकीकत यह है कि इसका निर्माण करने वाली कंपनियां यह तक नहीं बता रहीं कि एक्सप्रेस वे के निर्माण के लिए लाखों गैलन पानी वह आखिर कहां से लाएंगी। यह स्थिति तब है जबकि उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस वे इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथॉरिटी (यूपीईडा) ने कंपनियों को स्वयं यह जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल, आगरा से लखनऊ तक लगभग 301 किमी. लंबे एक्सप्रेस वे के निर्माण की जिम्मेदारी चार कंपनियों को सौंपी गई है। निर्माण में रोज हजारों गैलन पानी का उपयोग होगा। ऐसे में केंद्रीय भूजल बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना आवश्यक है। पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगड़ ने मुख्यमंत्री कार्यालय से जन सूचना अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी कि निर्माण में जो पानी इस्तेमाल किया जाएगा उसके लिए क्या कंपनियों ने पर्यावरणीय अनुमति ली है।
तोंगड़ की मांगी गई जानकारी को मुख्यमंत्री कार्यालय ने यूपीईडा भेज दिया। यूपीईडा ने मार्च में जिम्मेदार कंपनियों को इसका निर्देश दिया कि कंपनियों ने यदि पर्यावरणीय सहमति ली है तो उसकी प्रति तोंगड़ को तीन दिन के भीतर उपलब्ध कराएं। यही नहीं इसके बाद कंपनियों को अप्रैल में रिमाइंडर भी भेजा गया, लेकिन कोई जानकारी नहीं दी गई। वह कहते हैं कि इसकी चिंता निराधार नहीं है। दरअसल, यमुना एक्सप्रेस वे में कंपनियों ने निर्माण के लिए भूजल का अधाधुंध दोहन किया जिसका नतीजा यह है कि एक्सप्रेस वे के दोनों तरफ काफी बड़े इलाके में भूजल स्तर खतरनाक स्थिति तक नीचे चला गया।
क्या कहते हैं अधिकारी
राज्य स्तरीय पर्यावरणीय अध्यक्ष डॉ. सीएस भट्ट के मुताबिक प्रोजेक्ट में पानी की जो खपत होती है उसके लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड से अनुमति ली जाती है।
प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण
केंद्रीय भूजल बोर्ड के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक डीएन अरुण ने बताया कि बड़े प्रोजेक्ट के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है। दरअसल, इससे यह अनुमान निकाला जाता है कि निर्माण के दौरान कितने पानी का दोहन किया जाएगा और उसके सापेक्ष कितना जल संचयन किया जाएगा। आगरा एक्सप्रेस वे के लिए फिलहाल मेरे संज्ञान में बोर्ड से ऐसी कोई अनुमति अभी तक नहीं प्राप्त की गई है।