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पुलवामा हमले में राजनीतिक सामाजिक और सामरिक सबक विषय पर हुआ विमर्श


 शौर्यगाथा का अंतिम छंद शहादत है जिसके ओजस्वी सुर सिर्फ वतन पर मर मिटने वाले उन जवानों के दिल तक नहीं उतर पाते जो नीतिगत विफलताओं के चलते नाम से ही देश के दिल में धड़क रहे हैं। हाल ही में हुए पुलवामा हमले में 40 जवानों की मौत के बाद सिर्फ इनकी वीरता के किस्से लोगों की जुबान पर नहीं बल्कि कारणों की ओर जाते प्रश्नों की एक झड़ी भी समाज को विचलित कर रही। असल में यह घटना प्रशासनिक विफलता थी या राजनीतिक सबक…जैसे सवालों के जवाब ले.जनरल (अवकाश प्राप्त) आरपी साही ने दिए।

मध्य कमान के पूर्व स्टाफ अध्यक्ष एवं यूपी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ने कहा कि इंटेलिजेंस इनपुट था, जिस पर प्रशासनिक सक्रियता नहीं दिखी जिसका परिणाम सभी के सामने है। अपना लंबा समय घाटी को देने वाले साही बताते हैं कि कश्मीर और कश्मीरियत वैसी नहीं रही। पहले के कश्मीर में हिंदुस्तानियों की मेहमाननवाजी शामिल थी अब अलगाववादियों और पाक प्रायोजित आतंकवाद के चलते परायापन साफ नजर आता है। इसके अलावा निम्न बिंदुओं पर भी बात हुई।

देश सुरक्षा को लेकर हो सिर्फ एक नीति : सरकार कोई भी हो लेकिन एक राष्ट्र की भावना सबसे अहम है। जब तक राजनीतिक कदम सवरेपरि नहीं होंगे तब तक सीमा पर देश सुरक्षित नहीं होगा। देश सुरक्षा को लेकर सिर्फ एक नीति होनी चाहिए, दल या सरकार कोई भी हो।

हमारे पास कई विकल्प : बदला लेने का मतलब यह नहीं कि आप तुरंत गोली मार दीजिए। सन 1971 में राजनीतिक लक्ष्य था कि पाकिस्तान को सबक सिखाने का। इसके लिए यूनाइटेड नेशन सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वातावरण बनाया गया। छह महीने का समय तत्कालीन फील्ड मार्शल मॉनेक शॉ ने मांगा। किसी बड़े मिलिट्री ऑपरेशन से पहले कई तरह की तैयारियां करनी होती है, जिसके लिए कुछ समय जरूर लग सकता है।

पाक इसलिए बौखलाया

पाकिस्तान यह सोचता रहा है कि भारत को यदि दबाकर रखेंगे तो पानी की आपूर्ति होती रहेगी लेकिन प्रधानमंत्री ने साफ कह दिया है कि हम पानी रोक देंगे। इससे पाकिस्तान के बौखलाने का यही बड़ा कारण है।

यहां बदलाव जरूरी

हम जिम्मेदार नागरिक बनें। किसी भी एक्शन के लिए प्लान का बड़ा रोल है।

कश्मीर से गए कश्मीरी पंडितों को हमको वापस लाना होगा। जिससे एक संतुलन बन सके।

इजराइल और यूएस आर्मी की तरह हमको भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बेहतर करना होगा।

पैरामिलिट्री फोर्स की लीडरशिप को और बेहतर करने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत है।

हुर्रियत जैसे अलगाववादियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए। हुर्रियत को हम सुरक्षा क्यों दे रहे हैं?

घर से बाहर तक घेरने की जरूरत

पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए उसके पड़ोसी देशों से लेकर विश्व समुदाय के सामने उसके मंसूबों को दिखाने की जरूरत है। जैसे पानी रोकने की बात कहकर भारत ने एक डिप्लोमेटिक कदम उठा लिया है लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में खुद को संतुलित करने की जरूरत है। राजनीतिक एकजुटता सन 1971 में दिखाई दी थी। सन 1962 में हमारी सेना के पास हथियार नहीं थे लेकिन उस समय देश खड़ा हुआ।

महिलाओं ने अपने जेवर तक दिए। उसकी तैयारी हुई और सन 1971 में हमने इतनी बड़ी विजय पाकिस्तान पर हासिल की। सोशल, इकोनोमिक और फिर मिलिट्री के बाद लीगल एक्शन भी पाकिस्तान को सबक सिखाने का बेहतर विकल्प है। एलओसी पर क्रास बार्डर एक्टिविटी को चलते रहना होगा। वहीं आर्थिक कदम का नतीजा है कि आज पाकिस्तान में सब्जियां बहुत महंगी हो गई हैं। मिलिट्री ही आखिरी विकल्प है।


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