नई दिल्ली । एससी-एसटी अत्याचार निवारण संशोधन अधिनियम शुक्रवार को लोकसभा में पेश हो गया। उम्मीद जताई जा रही की सरकार इस पर सोमवार को चर्चा करा कर विधेयक को पारित करा लेगी और दूसरे ही दिन उसे राज्यसभा भेजा जा सकता है।
फिर से इस मुद्दे पर दलित संगठनों ने आंदोलन की घोषणा भी कर दी थी। विवाद तब और बढ़ गया जब यह फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गोयल को एनजीटी का अध्यक्ष बना दिया गया। ऐसे में सरकार अब कोई भी देरी नहीं चाहती है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट में अाज केन्द्र सरकार ने कहा कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) के लोग अपने आप मे पिछड़े हैं। वे दशकों से भेदभाव और छुआछूत का शिकार रहे हैं। उन्हें बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण दिया जाता है। उनके पिछड़ेपन के अलग से आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है। उन्हें सूची में शामिल करने का राष्ट्रपति का आदेश ही पर्याप्त है।
सरकार ने कहा कि एम नागराज के फैसले को पुनर्विचार के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाए। जबकि आरक्षण विरोधियों का कहना था कि कानून के मुताबिक प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए पिछड़ा होना पहली शर्त है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से सवाल किया कि अगर आंकड़े नहीं होंगे तो सरकार ये कैसे पता करेगी कि एससी-एसटी वर्ग का नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है कि नहीं।
ये दलीलें और सवाल शुक्रवार को एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के बारे में 2006 के एम नागराज के फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने के मंथन पर शुरू हुई सुनवाई के दौरान हुए। इस फैसले मे कहा गया है कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए सरकार को उनके पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े जुटाने होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की पीठ के इस फैसले के आधार पर आंकड़े न होने के कारण कई राज्यों के कानून कोर्ट से निरस्त हो चुके हैं। कई राज्य सुप्रीम कोर्ट आये हैं। केन्द्र भी दिल्ली हाईकोर्ट के खिलाफ आया है। हाईकोर्ट ने केन्द्र की 1997 की अधिसूचना रद कर दी थी।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई शुरू हुई तो केन्द्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि एम नागराज का फैसला गलत है। उन्होने कहा कि इंद्रा साहनी के फैसले मे कहा गया है कि एससी-एसटी के बारे मे पिछड़ेपन का सिद्धांत नहीं लागू होगा। इसके अलावा एमएम थामस के फैसले में भी संविधान पीठ कह चुकी है कि एससी-एसटी के मामले में राष्ट्रपति का आदेश जारी करना पर्याप्त है। इन फैसलों पर एम नागराज ने विचार नहीं किया है।