मुंबई ,एजेंसी। गणपति और दुर्गा पूजा के समय मंडपों में सज्जाकार रंगीन रोशनी, हवा और पन्नियों से लहकती आग का भ्रम पैदा करते हैं। दूर से देखें या तस्वीर उतारें तो लगता है कि आग लहक रही है। कभी पास जाकर देखें तो उस आग में दहक नहीं होती है। आग का मूल गुण है दहक। मोहित सूरी की चर्चित फिल्म में यही दहक गायब है। फिल्म के विज्ञापन और नियोजित प्रचार से एक बेहतरीन थ्रिलर-इमोशनल फिल्म की उम्मीद बनी थी। इस विधा की दूसरी फिल्मों की अपेक्षा ‘एक विलेन’ में रोमांच और इमोशन ज्यादा है। नई प्रतिभाओं की अभिनय ऊर्जा भी है। रितेश देशमुख बदले अंदाज में प्रभावित करते हैं। संगीत मधुर और भावपूर्ण है। इन सबके बावजूद जो कमी महसूस होती है, वह यही दहक है। फिल्म आखिरी प्रभाव में बेअसर हो जाती है।
नियमित रूप से विदेशी फिल्में देखने वालों का ‘एक विलेन’ में कोरियाई फिल्म ‘आई सॉ द डेविल’ की झलक देख सकते हैं। निस्संदेह ‘एक विलेन’ का आइडिया वहीं से लिया गया है। उसमें प्रेम और भावना की छौंक लगाने के साथ संगीत का पुट मिला दिया गया है। जैसे कि हम नूडल्स में जीरा और हल्दी डाल कर उसे भारतीय बना देते हैं या इन दिनों चाइनीज भेल खाते हैं, वैसे ही ‘एक विलेन’ कोरियाई फिल्म का भारतीय संस्करण बन जाती है। चूंकि इस फिल्म के निर्माता ने मूल फिल्म के अधिकार नहीं लिए है, इसलिए ग्लोबल दौर में ‘एक विलेन’ क्रिएटिव नैतिकता का भी शिकार होती है। हर देश और भाषा के फिल्मकार दूसरी फिल्मों से प्रेरित और प्रभावित होते हैं। कहा ही जाता है कि मूल का पता न चले तो आप मौलिक हैं।
‘एक विलेन’ मुख्य रूप से गुरु की कहानी है। आठवें और नौवें दशक की हिंदी फिल्मों में ऐ किरदार का नाम विजय हुआ करता था। तब परिवार के कातिलों से बदला लेने में पूरी फिल्म खत्म हो जाती थी। अब ऐसे ग्रे शेड के नायक की कहानी आगे बढ़ती है। सिल्वर स्क्रीन पर अपनी वापसी में एंग्री यंग मैन कुछ और भी करता है। बदला लेने और अपराध की दुनिया में रमने के बाद उसकी जिंदगी में एक लड़की आयशा आती है। आयशा प्राणघातक बीमारी से जूझ रही है। अपनी बची हुई जिंदगी में वह दूसरों की जिंदगी में खुशियां लाना चाहती है। उसे अपने एक काम के लिए गुरु उचित लगता है। इस सोहबत में दोनों का प्रेम होता है। गुरु अपराध की जिंदगी को तिलांजलि दे देता है। वह 9 से 5 की सामान्य जिंदगी में लौटता है, तभी मनोरोगी राकेश के हिंसक व्यवहार से वह फिर से एक बदले की मुहिम में निकल पड़ता है और मोहित सूरी की रोमांचक फिल्म आगे-पीछे की परतों का उजागर करती हुई बढ़ती है।
श्रद्धा कपूर निर्भीक और अकलुष आयशा के किरदार में सहज और स्वाभाविक हैं। मोहित ने उन्हें मुश्किल इमोशन नहीं दिए हैं। मौत के करीब पहुंचने के दर्द और जीने की चाहत के द्वंद्व को श्रद्धा ने व्यक्त किया है। अपनी सुंदर ख्वाहिशों में वह गुरु को बेहिचक शामिल कर लेती है। गुरु के रुप में सिद्धार्थ मल्होत्रा को ठहराव से भरे दृश्य मिले हैं। उन्होंने उन दृश्यों को बखूबी निभाया है। नई पीढ़ी के कलाकारों में सिद्धार्थ दमदार तरीके से अपनी मौजूदगी दर्ज कर रहे हैं। ‘एक विलेन’ अभिनेता रितेश देशमुख की प्रतिभा के अनदेखे पहलू को सामने ले आती है। वे मनोरोगी और सीरियल किलर के मानस और भाव को पर्दे पर लाने में सफल रहे हैं। तीनों मुख्य कलाकार अपनी भूमिकाओं में जंचते हैं। अगर फिल्म की पटकथा में दहक होती तो ‘एक विलेन’ इस साल की खास फिल्म हो जाती।
गीत-संगीत में निर्देशक,गीतकार और संगीतकार की मेहनत झलकती है। मिथुन, मनोज मुंतशिर और अंकित तिवारी के शब्द और ध्वनियों में फिल्म के किरदारों का अधूरेपन और टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी को अभिव्यक्ति मिली है। हालांकि संगीत पर आज के दौर का भरपूर असर है,लेकिन शब्दों में संचित उदासी-उम्मीद और निराशा-आशा फिल्म के कथ्य को सघन करती है। निर्देशक ने गीत-संगीत का सार्थक उपयोग किया है।
प्रमुख कलाकार: सिद्धार्थ मल्होत्रा, श्रद्धा कपूर, रितेश देशमुख और प्राची देसाई।
निर्देशक: मोहित सूरी
संगीतकार: अंकित तिवारी, मिथुन और सोच बैंड।
स्टार: तीन
अवधि: 129 मिनट