नई दिल्ली,एजेंसी-9 जून | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को 2009 के देहरादून फर्जी मुठभेड़ कांड के 18 में से 17 दोषी पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इस मुठभेड़ में 22 वर्षीय प्रबंधन के छात्र की मौत हो गई थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के न्यायाधीश जे. पी. एस. मलिक सजा की घोषणा की है।
इससे पहले सीबीआई ने इस मामले में हत्या के दोषी ठहराए गए उत्तराखंड पुलिस के सात कर्मियों को मृत्युदंड दिए जाने की मांग की। सीबीआई के वकील और वरिष्ठ लोक अभियोजक ब्रजेश कुमार ने विशेष न्यायाधीश को सात पुलिसकर्मियों को मृत्युदंड की सजा देने का अनुरोध करते हुए कहा कि इन लोगों ने ‘हिंसक तरीके’ से काम किया जो ‘दुर्लभतम’ की श्रेणी में आता है।
ब्रजेश कुमार ने कहा, “ये लोग (पुलिसकर्मी) कानून के रक्षक होते हैं लेकिन इन्होंने हिंसक व्यवहार किया। उन्हें पीड़ित की सुरक्षा करनी चाहिए थी, लेकिन इन्होंने एक फर्जी मुठभेड़ में उसे मार डाला।” उन्होंने कहा कि इन्हें कड़ी सजा मिलने से गहरा संदेश जाएगा और कोई भी भविष्य में इस तरह का अपराध करने की भी नहीं सोचेगा।
3 जुलाई 2009 को रणबीर सिंह नाम के छात्र की फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने के मामले में अदालत ने शुक्रवार को 18 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया। इस मामले ने उस समय राज्य को हिलाकर रख दिया था। दोषी ठहराए गए पुलिसकर्मियों में से सात तत्कालीन निरीक्षक संतोष जायसवाल, उपनिरीक्षक गोपाल दत्त भट्ट, राजेश बिष्ट, नीरज कुमार, नितिन चौहान और चंद्रमोहन को हत्या का दोषी करार दिया गया जबकि अन्य 10 पुलिस कर्मियों को हत्या की साजिश रचने और एक पुलिसकर्मी को गलत रिकार्ड तैयार करने का दोषी ठहराया गया।
गलत रिकार्ड तैयार करने के दोषी जसपाल सिंह गोसाईं सिटी कंट्रोल रूम में मुख्य आपरेटर था और उसे भादवि की धारा 218 (लोकसेवक द्वारा गलत रिकार्ड तैयार करना) के तहत दोषी ठहराया गया है। उसे जमानत पर शुक्रवार को ही छोड़ दिया गया, क्योंकि उसे केवल झूठा सबूत तैयार करने का दोषी ठहराया गया है और वह अधिकतम जेल काट चुका है।