फतेहपुर,एजेंसी-19 मार्च। उत्तर प्रदेश के फतेहपुर संसदीय क्षेत्र से हमीरपुर की विधायक साध्वी निरंजन ज्योति का नाम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी के रूप में सामने आने से एक बार फिर ‘जिलावाद’ का नारा एक चुटकुला बनकर रह गया है। साध्वी को प्रत्याशी बनाए जाने से जनमत के मामले में तीन बड़े दल भाजपा, बसपा और सपा की ओर से बाहरी प्रत्याशियों को प्रमुखता दी गई है। एक मात्र कांग्रेस ने जिले की रहने वाली उषा मौर्य को मौका दिया है।
मौजूदा सांसद राकेश सचान, बसपा प्रत्याशी अफजल सिद्दीकी और निरंजन ज्योति गैर जनपद से ताल्लुक रखते हैं। साध्वी को टिकट मिलने से सपा खेमे में खासी बेचैनी दिखाई पड़ रही है। कल तक अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे निषाद बिरादरी के एक नेता ने अपने आपको पीछे कर लिया है। निषाद बिरादरी को सपा अपने खाते में हालांकि अब भी जोड़कर चल रही है, मगर उसकी बेचैनी साफ नजर आ रही है।
बसपा खेमा साध्वी के प्रत्याशी बनने का लाभ उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है। उसका मानना है कि निषाद बिरादरी के भाजपा की ओर मुड़ने से सपा प्रत्याशी की ताकत कमजोर होगी, जिसका उसे सीधा लाभ मिलेगा।
गौरतलब है कि पूर्व में भी कांग्रेस स्थानीय प्रत्याशी पर विश्वास जताती रही है, लेकिन लोकसभा स्तर पर इनमें से किसी प्रत्याशी को विजयश्री हासिल नहीं हुई। यह पहला अवसर है जब कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग का प्रत्याशी उतारा है।
यहां पर यह भी महत्वपूर्ण है कि जनपद की संसदीय राजनीति में कांग्रेस पहली पार्टी है जिसने महिला को टिकट दिया। यह अलग बात है कि भाजपा ने भी साध्वी निरंजन ज्योति के रूप में पिछड़े वर्ग की महिला को प्रत्याशी बनाया है। अब कांग्रेस को इस कार्ड से कितना लाभ होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन कैसे भी चत्मकार की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है, 1978 से यह दल प्रयोग पर प्रयोग करता रहा है। 1978 में स्थानीय प्रत्याशी के रूप में पहली बार प्रेमदत्त तिवारी कांग्रेस प्रत्याशी बने, लेकिन इंदिरा गांधी के सघन चुनाव प्रचार के बावजूद प्रेमदत्त को शिकस्त का सामना करना पड़ा। उसके बाद 1980, 1984, 1989 और 1991 के चुनाव में हरी कृष्ण शास्त्री प्रत्याशी बनते रहे, जो अंतिम दो चुनावों में जमानत तक नहीं बचा सके। वर्ष 1996 में फिर कांग्रेस ने स्थानीय कार्ड चला और रामप्यारे पांडेय को प्रत्याशी बनाया, लेकिन हालात नहीं सुधरे। इसके बाद विभाकर शास्त्री, खान गुफरान जाहिदी और फिर विभाकर भाग्य आजमाते रहे, लेकिन कभी भी जमानत नहीं बचा पाए।
जहां तक भाजपा का सवाल है, सलीके से भारतीय राजनीति में इस दल के अभ्युदय के बाद एक भी मौके पर सवर्ण सांसद नहीं बना। वर्ष 1991 में डां. विजय सचान, 1996 में महेंद्र प्रताप नारायण सिंह, 1998 व 1999 एवं 2004 में डां. अशोक पटेल प्रत्याशी बने, लेकिन अंतिम चुनाव में उनकी पराजय के बाद पिछले लोकसभा चुनाव में राधेश्याम गुप्त प्रत्याशी बने। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त होने के बाद इस बार पार्टी ने पिछड़े वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया और पिछड़े वर्ग का ही प्रत्याशी उतारा।