लखनऊ,(एजेंसी)17 जून। यूपी के मुखिया अखिलेश यादव अपने स्लोगन “बन रहा है आज,संवर रहा है कल” को ले कर चाहे जितने संजीदा हो, बिजली के लिए उनकी कोशिशों को भले ही परवान चढ़ रही हों और केंद्रीय उर्जा मंत्री इसकी तारीफ़ कर गए हो, भले ही राजनाथ सिंह सार्वजनिक मीडिया में यह बात कह गए हो कि सरकार अच्छा काम कर रही है , मगर अखिलेश सरकार के सारे अच्छे कामो पर भारी उनके ही मंत्रियों की कारस्तानी पड़ने लगी है।
बीते हफ्ते में अखिलेश यादव की सरकार के कामों की तारीफ़ केंद्र की सरकार के दो बड़े मंत्रियों ने की और अभी सपा कार्यकर्ता इसका जश्न मना ही नहीं पाए थे कि एक के बाद एक दो मंत्रियों की करतूत ने सरकार को शर्मशार कर दिया। पहले राममूर्ती वर्मा पर पत्रकार जगेन्द्र की नृशंश हत्या का आरोप लगा और फिर कैलाश चौरसिया पर एआरटीओ की पिटाई और रंगदारी का। इसके पहले एक अन्य मंत्री पंडित सिंह पर एक पत्रकार को फ़ोन पर माँ बहन की गालियां देने का मामला तूल पकड़ चुका है। ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी की बदतमीजियों के खिलाफ पहले ही उनका समूचा स्टाफ हड़ताल पर चला गया था और खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के ऊपर अवैध संपत्तियों की शिकायत करने वाले आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी नूतन ठाकुर अपनी सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं।
इसमें कोई शक की गुन्जायिश नहीं कि सड़क और बिजली सरीखी बुनियादी सुविधाओं के लिए बीते तीन सालों में अखिलेश सरकार ने बेहतर काम किये हैं। बिना किसी विवाद के परियोजनाओं के लिए जमीन जुटाने का श्रेय भी इस सरकार को जाता है और पर्यटन से ले कर सिंचाई और अवस्थापना जैसे विभागों में बेहतर नतीजे भी मिल रहे हैं। बीते तीन सालों में बाहरी दुनिया में भी यूपी की छवि निखरी है और विदेशी निवेशकों का भी सूबे में रुझान बढ़ा है। नतीजतन बड़ी बड़ी सड़क परियोजनाए जहाँ तेजी से चल रही हैं वही मेट्रो जैसी परियोजनाओं का काम भी बेहतर गति से बढ़ रहा है।
कभी भदेस समझा जाने वाले यूपी में अब आईटी का माहौल है तो उसका श्रेय भी अखिलेश यादव को ही जाता है।
मगर नियमित समय अंतराल पर सरकार के नुमाईन्दे कुछ जरूर ऐसा काम कर जाते हैं जिससे सरकार के अच्छे कामों की चर्चा पीछे चली जाती है और अराजकता का आरोप पूरे परिदृश्य को ढँक लेता है।
सरकार बनने के कुछ ही दिनों बाद प्रतापगढ़ के कुंडा में डिप्टी एसपी की हत्या के मामले में अखिलेश सरकार के मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का नाम उछला था और तब मचे बवाल के बाद अखिलेश ने राजा भैया से इस्तीफ़ा ले कर यह संकेत दिया था कि उनकी सरकार में दागियों की कोई जगह नहीं होगी। हालाकि उस केस में राजा भैया बरी हुए और पुनः उनके मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया।
लेकिन बाद के दौर में न जाने क्यूँ अखिलेश यादव इस तरह के विवादों के उठने पर त्वरित कार्यवाही से बचते रहे। कई बार तो उन्होंने मीडिया पर ही सरकार को बदनाम करने का आरोप मढा। मगर इस बीच विकास के मुद्दों पर वे लगातार गतिशील दिखे। पार्टी में कई सत्ता केंद्र होने की चर्चाओं को वे नकारते रहे मगर ऐसा लगा कि उन्होंने खुद को अपने एजेंडे तक सीमित कर लिया है।
बीच बीच में पार्टी सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव पार्टी पदाधिकारियों और मंत्रियों को सुधरने की सलाह और चेतावनी भले ही देते रहे मगर न तो पार्टी के अराजक सिपाहियों ने उनकी बात सुनी न ही बेलगाम मंत्रियों ने।
बीते दिनों हुई तीन घटनाओं ने यह दिखाया कि सरकार के ये बेलगाम मंत्री किस तरह से पुलिस को अपने शिकंजे में रख रहे हैं।
पंडित सिंह के मामले में भी यह आरोप लगा था कि उनके कहने पर एक दरोगा ने जा कर पीड़ित के पिता और पीड़ित से मंत्री की बात करायी थी और उसके बाद मंत्री ने पिता पुत्र को भद्दी भद्दी गलियाँ दी थी। सोशल मीडिया पर पंडित सिंह के खिलाफ लिखना इस युवक को भारी पड़ा था। बाद में जब मंत्री की गालियों का टेप सामने आया तो मंत्री जी खुद की आवाज होने से मुकर गए।
राममूर्ती वर्मा के मामले में भी स्वर्गीय जगेन्द्र ने यह आरोप लगाया था कि मंत्री के इशारे पर पहले तो पुलिस ने उसके खिलाफ झूठे मुकदमे लिखे और फिर बाद में कोतवाल श्री प्रकाश द्वारा उसे जला दिया गया।
कैलाश चौरसिया के मामले में भी पीड़ित एआरटीओ का कहना है कि उसकी तहरीर पर पुलिस मुकदमा नहीं लिख रही है।
साल 2012 के चुनावों में अखिलेश यादव को जनता ने बहुमत से चुना था। अखिलेश के रूप में वह एक ऐसे युवा नेता की कल्पना कर रही थी जो विकास की एक व्यापक समझ रखता है और जमीन से जुडा है। वह अराजकता को पसंद नहीं करता और भ्रष्ट और अराजक लोगों की जगह उसके पास नहीं है ।
मगर तीन साल बीतने के बाद जैसे जैसे सूबे के चुनाव नजदीक आ रहे हैं अखिलेश यादव की छवि पर अराजक और भ्रष्ट मंत्रियों का साया गहराता जा रहा है। पार्टी के नेता भले ही इसे मीडिया के जरिये विपक्ष की साजिश कह दें मगर हकीकत को वे भी नहीं झुठला पा रहे हैं। पार्टी के अन्दर ही रविदास मेहरोत्रा जैसे विधायक मंत्रियों की हरकतों के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं।
अखिलेश ने अपना विकास के लिए दृष्टिकोण तो दिखा दिया हैं मगर अब वक्त है कि वे अपने सख्त नेतृत्व की क्षमता भी दिखाएँ। जनता के बीच विकास तो दिखेगा मगर अराजकता की चर्चाये यदि और बढ़ी तो मिशन 2017 अखिलेश के लिए उम्मीद से कही बड़ी लड़ाई होने जा रही है।