मुंबई,(एजेंसी)12 जून। महेश भट्ट ने ‘अर्थ’, ‘सारांश’ और ‘जख्म’ जैसी बेहतरीन फिल्में लिखी हैं और उनकी कहानियों को दर्शकों ने खूब सराहा भी है। बॉलीवुड में लंबी पारी और निजी जिंदगी के अनुभवों को पिरोकर महेश इस बार अपने पिता नानाभाई भट्ट, मां शिरीन मुहम्मद अली और सौतेली मां की जिंदगी पर आधारित ‘हमारी अधूरी कहानी ‘ लेकर आए हैं। कहानी महेश भट्ट की है और डायरेक्शन का जिम्मा मोहित सूरी के कंधों पर रही।
फिल्म का नाम: हमारी अधूरी कहानी
डायरेक्टर: मोहित सूरी
स्टार कास्ट: विद्या बालन, इमरान हाशमी, राजकुमार राव
अवधि: 131 मिनट
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 1.5 स्टार
फिल्म के एक सीन में विद्या बालन और इमरान हाशमी
मोहित सूरी इससे पहले ‘आशिकी 2’ और ‘एक विलेन’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में दे चुके हैं। यानी उम्मीद और अपेक्षा इधर भी है और उधर भी, लेकिन यह ‘अधूरी’ कहानी दर्शकों के दिल में घर बना पाएगी, इसमें संशय है।
कहानी:
ये कहानी वसुधा प्रसाद (विद्या बालन) की है। वसुधा का पति हरी (राजकुमार राव) 5 वर्षों से लापता है। वसुधा अपने बेटे सांझ की देखभाल अकेले करती है, लेकिन कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं कि जीवन की राह में वसुधा की मुलाकात आरव (इमरान हाशमी) से होती है. जिंदगी दोराहे पर आ जाती है और प्रेम में त्रिकोण बनता है। अब कहानी में उतार-चढ़ाव का दौर शुरू होता है और आखिर में हमेशा की तरह प्यार की जीत होती है।
पटकथा और संगीत:
इस फिल्म की पटकथा महेश भट्ट और शगुफ्ता रफीक ने लिखी है, जो आपको भावुक करने की कोशिश तो करती है लेकिन यह कोशिश मात्र बनकर रह जाती है। द्वंद्व ऐसा कि कभी आपको वसुधा की जिंदगी पर तरस आता है तो कभी सारी भावनाएं धूमिल हो जाती हैं। फिल्म की जान इसके डायलॉग हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले इसके साथ सही ढग से न्याय नहीं कर पाता।
बतौर डायरेक्टर मोहित सूरी ने भरपूर कोशिश की है कि गानों के साथ कहानी का ऐसा घोल तैयार किया जाए जो गर्मी के इस मौसम में ‘आशिकी 2’ और ‘एक विलेन’ की तरह फुहार बनकर दर्शकों के चित्त को शांत करे, लेकिन अफसोस की उनकी यह कोशिश भी फिल्म की कहानी की तरह ‘अधूरी’ रह जाती है। हालांकि फिल्म के संगीत को श्रोताओं और दर्शकों से सराहना मिल चुकी है, जिसमें टाइटल ट्रैक सबसे अच्छा है।
अभिनय पक्ष:
एक्टिंग की बात करें तो विद्या बालन ने वसुधा के किरदार को बखूबी निभाया है, वहीं इमरान हाशमी अपने करियर के सबसे बेहतरीन किरदार में हैं, लेकिन इन सब के बीच असल दाद अभिनेता राजकुमार को देनी होगी। उन्हें अभिनय के एक नए स्तर को छुआ है, कुछ ऐसा कि आप वाकई उनसे घृणा करने लगते हैं, हालांकि कई बार उनका किरदार आपको भावुक भी करता है।
कहां रह गई कमी:
यह दिलचस्प है कि इतने बेहतरीन कलाकार, मंझे हुए डायरेक्टर, बेहतरीन संगीत और उम्दा लेखक के बावजूद फिल्म की कहानी ‘अधूरी’ सी लगती है। पूरी फिल्म ऐसी जान पड़ती है जैसे हर किरदार को रोने के लिए ही बनाया गया है और यहीं पर दर्शकों का फिल्म से लगाव खत्म होने लगता है। वो कहते हैं न ‘अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप’।
फिल्म 131 मिनट की है और बीच-बीच में गानों की धुन इसे और लंबी बनाती है। फिल्म में एक डायलॉग है, ‘प्यार एक जिम्मेदारी है जिसे सिर्फ तकदीर वाले ही उठाया करते हैं’। काश! इस कथन को मोहित सूरी इस फिल्म की मेकिंग के संदर्भ में देख पाते।
क्यों देखें:
अगर आप एक्स्ट्रा इमोशनल हैं या विद्या बालन और राजकुमार राव की एक्टिंग के कायल हैं तो ये फिल्म जरूर देखें। हालांकि अगर आप मोहित सूरी की पिछली दो फिल्मों के आधार पर इस फिल्म का चयन करने वाले हैं तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी।
क्यों ना देखें:
बीते एक जून से सर्विस टैक्स भी बढ़ चुका है। लिहाजा टिकट के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में अगर आपको ‘पैसा वसूल’ फिल्म की तलाश है तो बेहतर है वीकएंड का कोई और प्लान बनाइए।