नई दिल्ली,(एजेंसी)08 जून। रेप की जांच के लिए 2 फिंगर टेस्ट को सही ठहराने वाले सर्कुलर पर दिल्ली सरकार ने लीपापोती की तैयारी कर ली है। सूत्रों के मुताबिक सर्कुलर के बारे में स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन को जानकारी नहीं थी।
सर्कुलर जारी होने के बाद मामला गरमाने पर स्वास्थ्य मंत्री ने इस मुद्दे पर समीक्षा बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि अपनी छवि बचाने के लिए केजरीवाल सरकार सर्कुलर जारी करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है।
जानें क्या है टू फिंगर टेस्ट:-
Symbolic Image
गौरतलब है कि रेप की जांच के लिए 2 फिंगर टेस्ट को सही ठहराने वाला सर्कुलर जारी करने के बाद दिल्ली सरकार ने फौरन इसे वापस ले लिया। दिल्ली सरकार ने विशेषज्ञों के 14 पृष्ठों के दस्तावेज के आधार पर 2 फिंगर टेस्ट को उचित ठहराते हुए एडवाइजरी जारी की थी। जिसमें कहा गया था कि रेप की जांच करने वाले डॉक्टरों की सुविधा के लिए इस टेस्ट पर पूर्णत: प्रतिबंध लागू करना सही नहीं है, साथ ही इस टेस्ट को हटा देने पर रेप की जांच भी निष्पक्षता से करने में मुश्किल आएगी। यहां यह बताना जरूरी है कि यौन हिंसा की जांच के लिए इस टेस्ट के इस्तेमाल का समय-समय पर विरोध होता रहा है।
2 फिंगर टेस्ट जिसे ‘पीवी टेस्ट’ भी कहा जाता है रेप की जांच के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें महिला के गुप्तांग में उंगलियां डाल कर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है। महिलाओं के लिए काम करने वाली कई संस्थाएं इस टेस्ट का विरोध करती रही हैं। इस टेस्ट के विरोध करने के पीछे एक वजह यह भी है कि इस टेस्ट द्वारा यह जांच की जाती है कि रेप की शिकार महिला सेक्स की आदी है या नहीं।
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस टेस्ट पर टिप्पणी देते हुए कहा था कि यह टेस्ट रेप सर्वाइवर के निजता के अधिकार का हनन करता है। शीर्ष कोर्ट ने सरकार को रेप की जांच के लिए बेहतर तरीका इस्तेमाल करने का निर्देश दिया था। बाल अधिकार कार्यकर्ता राज मंगल प्रसाद कहते हैं, ‘यह बात अब जगजाहिर है कि 2 फिंगर टेस्ट यौन हिंसा की जांच करने के लिए एक गैर जरूरी टेस्ट है। यह पहले से यौन हिंसा के शिकार के साथ दूसरी बार रेप करने जैसा है।’
हालांकि सरकार से जुड़े एक सूत्र के अनुसार, सरकार यह टेस्ट किसी पर थोप नहीं रही। यह एडवाइजरी सिर्फ इस मसले पर सरकार का पक्ष सामने रखने के लिए जारी की गई है। यूं भी एडवाइजरी में साफ लिखा गया है कि इस टेस्ट को करने से पहले पीड़ित की मंजूरी लेना जरूरी है।’ ये अलग बात है कि कई एनजीओ के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में यह टेस्ट धड़ल्ले से चलता है। कई मामलों में तो पीड़ित से इस बाबत राय भी नहीं ली जाती।