सीवान,(एजेंसी)05 जून। साथ जीने और साथ मरने की कसम खाने वाली दो समलैंगिक सहेलियों ने सीवान-भटनी रेलखंड पर बड़गांव के समीप बुधवार की देर रात मालगाड़ी के आगे कूदकर जान दे दी।
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एक की मौत घटनास्थल पर ही हो गई, जबकि दूसरे की मौत रेफरल अस्पताल में। दोनों में गहरी दोस्ती थी। यही कारण रहा कि एक की शादी होने व तीन दिन बाद उसकी विदाई की खबर से दोनों खुद को असहज महसूस करने लगीं और दुनिया छोड़ने का फैसला ले लिया।
मृत लड़कियां यूपी के देवरिया जिले के खामपार थाने के सिरसिया पवार गांव की शिमला और नीपू थी। दोनों बचपन से सहेली थी और दोनों सीमावर्ती भटवलिया गांव में रिश्तेदारी में रह रही थीं। दोनों अपने घर से बुधवार की रात में आठ बजे निकली थीं।
शिमला सिरिसिया पवार के सुदामा प्रसाद की बेटी थी। वह अपने मामा विसजर्न प्रसाद के यहां बनकटा थाने के भटवलिया में रहती थी। एक जून को उसकी शादी हुई थी। 4 जून को विदाई होने वाली थी। उसकी सहेली नीपू भी सिरिसिया की रहने वाली थी। दार के यहां रहती थी। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।
बच सकती थी नीपू की जान
अगर लोगों में मानवीय संवेदना रहती तो बच सकती थी नीपू की जान। घायल नीपू को इलाज के लिए लाने की बजाय लोग मूकर्दशक बने रहे, जो कि मानवीय संवेदना खोने का एक उदाहरण है।
ट्रेन से कटने के बाद नीपू कई घंटे तक घायल अवस्था में रेलवे ट्रैक के समीप पड़ी रही। हालांकि किसी ने उसे ट्रैक से हटाकर दूर जरूर कर दिया था, लेकिन इलाज के लिए अस्पताल नहीं लाया।
घटना के कुछ समय बाद ही लोग पहुंच गये। लगभग दो घंटे तक वह घटनास्थल पर पड़ी रही, लेकिन स्थानीय लोग इलाज की बजाय पुलिस के इंतजार में खड़े रहे।
स्थानीय थाना प्रभारी को लोगों ने मोबाइल पर घायल लड़की के होने की बात बतायी। थानाध्यक्ष के कहने के बाद भी लोग उसे अस्पताल लाने में डर रहे थे। घंटों घायल नीपू कराह रही थी।
घटनास्थल से अस्पताल की दूरी मात्र तीन किलोमीटर होने के बाद भी लोग अस्पताल नहीं ला रहे थे। सूचना बनकटा स्टेशन से होते हुए मैरवा थाने में पहुंची तो पुलिस घटना स्थल पर गयी।
पुलिस रात को ग्यारह बजे के करीब पहुंची। पुलिस के जाने के बाद भी लोग मूकदर्शक बने रहे और पुलिस जीप में ही घायल को कई घंटे बाद लाया गया। इसके बाद उसे अस्पताल लाया गया।
यहां आने के बाद भी वह कराह रही थी। खून अधिक निकल गया था। चिकित्सकों ने उसका इलाज किया और बाद में रेफर कर दिया। सीवान जाने के बाद इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया।
विदाई गीत के बीच मची चीख पुकार
सीमावर्ती भटवलिया गांव के विसजर्न प्रसाद के यहां बुधवार की रात मंगल गीत के बीच शिमला की मौत से मातम छा गया है। वह ससुराल जाने से पूर्व दुनिया से विदा हो गयी। शिमला के ट्रेन के सामने कूदकर जान देने से परिवार में कोहराम मच गया है।
शादी के बाद विदायी की तैयारी पलभर में काफूर हो गयी। गुरुवार की सुबह ही उसकी विदाई होने वाली थी। घर में महिलाएं मंगल गीत के बीच मिठाई बना रही थी। शिमला की शादी एक जून को देवरिया के बनकटा थाने के इंगुरी गांव में हुई थी।
इधर भटवलिया के विसजर्न प्रसाद की बहन की शादी सिरिसिया पवार के सुदामा प्रसाद से हुई थी। सुदामा प्रसाद के नाच पार्टी से जुड़े होने से विसजर्न प्रसाद की बहन मायके में ही रहती थी। यहीं शिमला भी पली-बढ़ी। मामा ने ही उसकी शादी इंगुरी के संजीव से एक जून को धूमधाम से की थी।
शिमला के साथ घर में उसकी सहेली नीपू भी थी। सात बजे के करीब दोनों घर से निकली। परिजनों ने समझा की गांव में ही कहीं जा रही हैं। घंटों बाद भी जब दोनों नहीं लौटी तो घर वालों ने खोजबीन शुरू की, लेकिन दोनों नहीं मिली। इधर रेलवे ट्रैक पर शव मिलने की खबर सुनकर परिजन भी चुप हो गये।
सुबह होते-होते लड़कियों के ट्रेन से कटे होने की खबर जंगल में आग की तरह फैल गयी। इधर पुलिस भनक लगने पर भटवलिया गांव पहुंची तो परिजन सामने आए और शव को ले जाने के लिए राजी हुए।
उठ रहे हैं कई सवाल
कहा जा रहा है जमाना बदल गया और साथ ही लोगों का नजरिया भी। अब नजरिया बदला तो विचारधाराएं स्वत: ही बदल जायेंगी। हालांकि बदलते परिवेश में आज भी कहीं न कहीं विचारधाराएं इस कदर जकड़ी हुई हैं कि उसके आगे सब कुछ गौण है।
यही कारण है कि न तो लोगों की सोच में बदलाव आया है और न विचारधारा में। बुधवार की रात सीवान-भटनी रेलखंड पर बड़गांव गांव के समीप अप मालगाड़ी के आगे कूदकर जान देने वाली सिरसिया गांव की शिमला व नीपू की मौत के पीछे का द्वंद्व भी कहीं न कहीं विचारधारा और रुढ़िवादी परंपराओं के बीच का टकराव ही है।
विश्व के कई देशों में आज समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिल चुकी है, तो भारत समेत कई देशों में इसे आज भी समाज व कानून के नजरिए से जायज नहीं बल्कि नाजायज संबंध कह कर हेय दृष्टि से देखा जा रहा है।
मैरवा के सिरसिया गांव की शिमला व नीपू के बीच पनपा प्रेम भले ही उनकी नजर में प्यार को मान्यता देने वाला था, लेकिन बिहार व सीवान समेत भारत में इसके लिए कहीं से भी कोई स्थान आज भी नहीं है। यह अलग बात है कि परिवार व समाज के नजरिए को दरकिनार कर आज सैकड़ों समलैंगिक रिश्ते समाज में फल-फूल रहे हैं, जिसमें कइयों को पहचान मिल चुकी है, तो कई अपने रिश्ते को एक नाम देने के लिए जद्दोजहद कर रह हैं।
ऐसा ही मामला शिमला व नीपू के बीच भी पनपा था जिसका अंत दोनों की मौत के साथ हो गया। अरसे से एक-दूसरे को प्यार करने वाली शिमला व नीपू भी समाज व परिवार के इस नजरिए से कहीं न कहीं वाकिफ हो चुकी थीं कि उनका रिश्ता मान्य नहीं होगा। शायद उन्हें भी इस बात का एहसास था कि प्यार के पैरवीकार व प्यार की दुहाई देने वाले उनके मामले में वहीं रुढ़िवादी विचारधारा को अपनाएंगे और उसी परंपरा की दुहाई देंगे जो उनके एक-दूसरे से अलग होने का कारण बनेगा।
इधर मजबूत होते उनके रिश्तों के बीच शिमला की शादी और फिर गुरुवार को उसकी विदाई की खबर ने दोनों सहेलियों के मन के द्वंद को और भी बढ़ा दिया। एक-दूसरे से बिछड़ने के द्वंद से जूझ रही दोनों सहेलियों ने आखिरकार वही किया जो अक्सर प्यार से जुड़े मामले में देखने या सुनने को मिलते रहते हैं और फिर वही हुआ जिसकी कल्पना शायद शिमला व नीपू ने भी नहीं की होगी।
बुधवार की देर शाम घर से निकली दोनों सहेलियों ने भले ही ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी, लेकिन उनकी मौत से उठे सवाल फिर भी कई सारे सवालों को एक साथ जोड़कर खड़े कर दे रहे हैं। हालांकि इस मामले में अब तक न तो घर वाले खुलकर कुछ बोल रहे हैं और न पुलिस ही कुछ खुलकर बोल रही है।
बावजूद शिमला व नीपू के समलैंगिक रिश्तों की चर्चाएं सरेआम होनी शुरू हो गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि पुरुष व स्त्री के बीच बनाए गए संबंधों के बीच किन परिस्थितियों में एक तीसरा प्रेम पनप रहा है जिसे समाज में समलैंगिक संबंधों का नाम दिया जा रहा है?
प्यार के लिए दी जान या फिर रिश्ते के लिए
अरसे पहले एक फिल्म आई थी सरस्वती चंद। तब फिल्म का यह गाना छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए.. न दो प्यार करने वालों के सिर चढ़कर बोल रहा था बल्कि उसकी गूंज आज भी लोगों के दिलों को झकझोर जाती है।
जिले के मैरवा प्रखंड में बुधवार की रात प्यार के लिए जान गंवाने वाली दो लड़कियों की मौत पर चाहे जिस तरह की चर्चा क्यों न हो, लेकिन उनकी मौत की वजह सिर्फ एक ही है, प्यार?
प्रश्न उठता है कि क्या प्यार इस कदर जुनून बन चुका है कि इसे पाने के इंसान मौत को भी गले लगाने से नहीं हिचक रहा है। हर छोटी-बड़ी बात पर उग्र हो रही युवा पीढ़ी आज मौत को गले लगाने में जरा सा भी देरी आखिर क्यों नहीं कर रही है।
शिमला व नीपू की मौत का कारण एक ओर उनके समलैंगिक रिश्तों से जोड़कर देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस बात पर भी चर्चा होने लगी है कि विपरित रिश्तों में नहीं होने के बावजूद उन दोनों रिश्तों में ऐसी कौन से बात थी कि एक से बिछड़ने के डर से दोनों ने मौत को ही गले लगाना उचित समझा।
शहरी परिवेश से दूर सुदूर ग्रामीण इलाके में रहने वाली अति सामान्य परिवार की इन दो लड़कियों के बीच आखिर किन परिस्थितियों में प्यार भी पनपा तो ऐसा कि उसकी कीमत इन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी?
बच्चे फिर चाहे वो हाई प्रोफाइल फैमिली से आते हों या मध्यम श्रेणी से वे इस बात को भलि भांति जानते हैं कि प्यार कितना जटिल रिश्ता है। उसमें भी बात अगर समलैंगिक रिश्तों की हो तो रिश्ते स्वीकार करने की बात कौन कहे लोग इस संबंध में बात करने से भी डरते हैं।
फिर शिमला व नीपू में यह ताकत कहां से आई जो सब कुछ भूलकर उन्होंने न सिर्फ समलैंगिक रिश्ते को मजबूती दी बल्कि इस रिश्ते की खत्म होने की बारी आई तो खुद को ही मिटा देना ही अधिक जरूरी समझा। और वो भी किसी और के लिए नहीं बल्कि एक-दूसरे के लिए फिर समाज चाहे उनके रिश्ते को समलैंगिक नाम ने या कुछ और।
बहरहाल बात चाहे जो भी हो, लेकिन शिमला व नीपू की मौत से न सिर्फ सीवान बल्कि सारण या फिर पूरे बिहार में समलैंगिक रिश्तों को लेकर एक कड़वी सच्चई सामने आई है। एक ऐसी सच्चाई जिसके पीछे का सच कुछ और ही बया करता है, जिसे जानने, समझने और उससे सबक लेने की जरूरत है, न कि कुछ और।