मुंबई,(एजेंसी)29 मई। डायरेक्टर आशीष आर मोहन ने रोहित शेट्टी के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर कई फिल्मों में काम करने के बाद अपनी पहली फिल्म ‘खिलाड़ी नंबर 786 ‘ डायरेक्ट की थी और उसके बाद ‘वेलकम टू कराची’ एक निर्देशक के रूप में आशीष की दूसरी फिल्म है। इस बार आशीष ने अरशद वारसी और जैकी भगनानी को साथ लेकर एक अनोखी कहानी कहने की कोशिश की है, क्या यह दर्शकों के मानक पर खरी उतरेगी, आइए इसकी समीक्षा करते हैं, सबसे पहले जानते हैं कि कहानी क्या है।
फिल्म: वेलकम टू कराची
डायरेक्टर: आशीष आर मोहन
स्टार कास्ट: अरशद वारसी, जैकी भगनानी , लॉरेन गॉटलिब
अवधि: 132 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 2 स्टार
वेलकम टू कराची फिल्म का एक सीन
ये कहानी दो दोस्तों शम्मी (अरशद वारसी) और केदार पटेल(जैकी भगनानी ) की है, जो जामनगर (गुजरात) में रहते हैं. एक ही आदमी के लिए काम करते हैं। उनके पास एक बोट है, जो शादियों में दी जाती है। शम्मी उस बोट का कप्तान और केदार रख रखाव करने वाला होता है। केदार का सपना होता है अमेरिका जाने का जिसके जुगाड़ के लिए कभी वो अपना सरनेम बदल लेता है तो कभी वीजा के लिए जुगत लड़ाता है फिर शम्मी और केदार प्लान करते हैं कि काम करने के बाद दोनों बोट से ही अमेरिका निकल जाएंगे। किन्ही वजहों से बोट डूब जाती है और किनारे पर पहुंचते ही इन्हें लगता है कि ये अमेरिका पहुंच गए हैं लेकिन दोनों कराची पहुंच जाते हैं।
फिर होती हैं कई घटनाएं जो कॉमेडी के साथ साथ बेवकूफी से भरी होती हैं और आखिरकार इन दोनों का मकसद हो जाता है किसी तरह से भारत वापस पहुंच जाएं। अब क्या ये वापस आ पाते हैं , इसका पता फिल्म देखकर ही चलता है।
स्क्रिप्ट, एक्टिंग और संगीत
स्क्रिप्ट की सोच तो काफी सही है लेकिन मजाक की निरंतरता को बनाए रखना काफी अहम काम था,जो की फिल्म नहीं हो पाया है। इंटरवल से पहले तक हंसी मजाक के साथ फिल्म का लुत्फ उठाया जा सकता है लेकिन उसके बाद कुछ भी होने लगता है और एक वक्त पर खुद से सवाल पूछने लगते हैं हम कि ‘आखिर हो क्या रहा है ‘, हालांकि डायरेक्टर ने कुछ रियल शॉट्स को प्रयोग में लाने की कोशिश की है जो की रिक्त स्थान की पूर्ति करने में उपयुक्त रहते हैं।
एक्टिंग की बात करें तो जैकी भगनानी की अदाकारी पिछली फिल्मों से काफी बेहतर है और गुजराती किरदार को निभाने की ललक उनके चेहरे और अभिनय में दिखती है। अरशद वारसी को जितना प्रयोग में लाया जा सकता था शायद उसका 40 फीसदी ही उपयोग में आया है। अरशद के लिए और भी ज्यादा स्क्रीन स्पेस दिया जा सकता था। फिल्म में ISI की एजेंट बनी अभिनेत्री लॉरेन गॉटलिब का किरदार थोड़ा शुरू में और थोड़ा आखिर में दिखाई देता है जिसको निभाने का भरसक प्रयास उन्होंने किया है।
फिल्म के गाने काफी अच्छे हैं लेकिन कुछ गीत कम हो जाते तो फिल्म की गति थोड़ी और बेहतर दिखती। खास तौर से ‘शकीरा’ गीत जो की ड्रीम सीक्वेंस में आता है ,उसको छोटा किया जा सकता था।
क्यों देखें
इस फिल्म को देखने के लिए आपको अपना दिमाग घर पर रखकर थिएटर में घुसना होगा। अगर ऐसा संभव है तो जरूर इस फिल्म को देखिए। अगर आप जैकी भगनानी, लॉरेन गॉटलिब के दीवाने हैं तो ये फिल्म देख सकते हैं और अगर आप अरशद वारसी के फैन हैं तो शायद आपको वो परफॉर्मेंस आपको ना मिले जिसकी आप चाहत रखते हैं।
क्यों ना देखें
अगर आप पूरे पैसा वसूल फिल्म की तलाश में हैं, तो ये फिल्म आपके लिए नहीं बनी है।