एजेंसी। तुम मुझे यूं भुला न पाओगे.यह गीत रफी साहब ने 43 साल पहले जब फिल्म ‘पगला कहीं का’ के लिए गाया था तो उन्हें पता नहीं होगा कि इसे वे अपने लिए गा रहे हैं। उन्हें इस दुनिया से विदा हुए लंबा अरसा हो गया है, लेकिन यह सच है कि लोग उन्हें वाकई भुला नहीं पा रहे। जिस तरह रफी साहब के गीत आज भी उसी आनंद के साथ गुनगुनाए जाते हैं, लगता ही नहीं कि उन्हें बिछुड़े हुए इतना लंबा अरसा हो गया है। आज रफी साहब होते तो 89 बरस के हो गए होते। बेशक रफी साहब हमारे बीच में नहीं है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि इस महान गायक की याद उनके जन्मदिन पर न आए।
24 दिसंबर, 1924 को पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में उनका जन्म हुआ था। महज 13 साल की उम्र से सार्वजनिक मंच पर गाने की शुरुआत करने वाले इस विरले गायक ने 13-14 भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पैनिश, डच और पारसी भाषा में भी गाने गाए। रफी साहब को संगीत का शौक अपने मोहल्ले में आने वाले एक फकीर के गाने सुनकर लगा था। वे उस फकीर के गानों की नकल करने की कोशिश करते थे। धीरे-धीरे उनके बड़े भाई हमीद ने उनके अंदर छिपे असाधारण गायक को पहचाना और उन्हें संगीत की तालीम दिलाई।
6 बार फिल्म फेयर अवार्ड हासिल करने वाले पद्मश्री मोहम्मद रफी ने दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, जॅाय मुखर्जी, धर्मेद्र, राजेश खन्ना समेत तमाम बड़े अभिनेताओं के लिए गाया। बहारो फूल बरसाओ., मैंने पूछा चांद से., बाबुल की दुआएं लेती जा., क्या हुआ तेरा वादा., हम लाए हैं तूफान से किश्ती निकालकर.जैसे उनके एक से बढ़कर एक गाने आज भी उसी शिद्दत से गुनगुनाए जाते हैं। बेशक इस बात को लेकर विवाद रहा है कि उन्होंने कुल कितने गाए, लेकिन जो भी गाए, सब अमर हो गए।
अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले रफी साहब ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए गाना रिकॉर्ड किया, ‘यह शाम क्यूं उदास है दोस्त.’ और लाखों लोगों की उदास शामों को अपनी जादुई आवाज से खुशनुमा बना कर हमेशा के लिए विदा हो गए।